पूर्वा भारद्वाज लंबे समय से जेंडर, शिक्षा, भाषा आदि मुद्दों पर काम कर रही हैं। साहित्य में उनकी खास रुचि है। इन दिनों वे दिल्ली में रह रही हैं।
आजकल झाड़ू का बड़ा शोर है – दिल्ली विधानसभा के चुनाव का ताज़ा नतीजा हमारे सामने है – उसमें जीतने वाली पार्टी है आम आदमी पार्टी और उसका चुनाव चिह्न है झाड़ू।
चुनाव के नतीजे से खुश है सरोज। वह घर की साफ-सफाई करती है। उस दौरान खूब गपशप करती है – लेकिन आज जैसी चहक उसमें मैंने पहले कम देखी थी – सरोज ने गर्व से कहा कि यही झाड़ू मेरा रोज़गार है, मेरा औज़ार है। मैंने झाड़ू-पोंछा करके अपने पांच बच्चों को पाला है – मेरी किस्मत इस झाडू से बंधी है। पति ने जब मारपीट की तब भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। अपना काम करती रही। खुद नहीं पढ़ पाई, लेकिन मैंने अपनी बेटियों को पढ़ाया। सब अपना काम करेंगी। मेरा क्या है? पांच-छह घर काम करती हूं और खुश रहती हूं – घूमने फिरने कम जाती हूं। लेकिन मुझे सबकी खोज-खबर रहती है। अब देखना है कि चुनावी झाडू क्या करती है। मैंने उम्मीद तो लगा रखी है।
सरोज का जुझारुपन मैंने देखा है। उसकी राजनीतिक चेतना की भी मैं प्रशंसक हो गई हूं। उसको चुनाव की पूरी खबर है। अपने चुनाव क्षेत्र में हो रही उठापटक की खासकर, सारे उम्मीदवारों का इतिहास उसे पूरा मालूम है। उसका चुनावी मुद्दा साफ है – बिजली-पानी का दाम। प्रधानमंत्री से लेकर 26 जनवरी की परेड तक के बारे में उसकी अपनी पक्की राय है। अमेरिका से आए ओबामा पर कितना पैसा पानी की तरह बहाया गया, यह उसका सवाल है।
वह जिन सधे हएु शब्दों में बोलती है वह तारीफ के लायक हैं। वह तर्क करती है और दूसरों की बोली बंद करा सकती है। मैं सोच रही थी कि यदि सरोज को मौका मिलता तो शायद वह किसी विधानसभा में सवाल करती हुई नज़र आती। मगर कहां मौका मिलता है औरतों को? उसमें भी गरीब औरतों को जिनको न पढ़ने-लिखने का मौका मिलता है, न मारपीट से मुक्ति। इसलिए, हर मौका आगे बढ़कर ही लेना होगा।