देश के एकमात्र ग्रामीण रोज़गार योजना के लिए इस साल भी बजट में निर्धारित राशि कम है| इस साल के आम बजट में मनरेगा के लिए 38,500 करोड़ आवंटित हुआ है। यह पिछले साल से 3,801 करोड़ अधिक है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि पिछले सालों की तुलना में इस साल सबसे ज़्यादा मनरेगा के लिए बजट निर्धारित हुई है। पर जेटली जी गलत है: ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ मनरेगा को पिछले सालों में इससे ज्यादा आवंटन मिला है। 2010-11 में 39,552 करोड़ आवंटित हुआ और 2013-14 में 38,552 करोड़ रूपए।
इस साल फरवरी तक का मनरेगा का बकाया खर्च 6,470 करोड़ रूपए है। ये मार्च में और भी बढ़ेगा। काम की मांग है, और जो काम हुआ है उसमें वेतन कई जगह नहीं मिली है। अगर हम पिछले साल के बकाया को इस साल के आवंटन से घटाएं, तो आवंटन 32,030 करोड़ हो जाएगा। ये रकम पिछले 4 साल के आवंटन से भी कम है। मनरेगा के साल के आवंटन से इस तरह पैसे काटना पिछले 3 साल से चलन में है दोनों यूपीए और एनडीए के शासन में। अगर साल का अंत में भी बकाया खर्च हो, तो इसका मतलब मज़दूरों को अभी भी वेतन मिलना बाकी है।
सरकार ने प्रस्ताव किया कि मनरेगा का उपयोग सूखा ग्रस्त क्षेत्रों में जल संरक्षण के माध्यम से हो। बजट में 5 लाख खेत तालाब और 10 लाख जैविक खाद के गड्ढे बनवाने का प्रस्ताव किया गया है
लेख साभार: डाउन टू एअर्थ