विकास काम करने से होता है, योजनाओं की घोषणाओं से नहीं। शायद यही वजह है कि सैकड़ों योजनाएं और करोड़ों का बजट होने के बाद भी हम विकास के लक्ष्य में पीछे हैं।
देश में इस बार एक नई तरह की परंपरा की शुरुआत हुई। प्रधानमंत्री से लेकर सांसदों तक ने कम से कम एक-एक गांव को विकसित करने का जिम्मा उठाया। इन लोगों ने अपने क्षेत्र के गांवों को गोद लिया। कहा गया कि इन गांवों को आदर्श गांव बनाया जाएगा। इनकी देखा-देखी उत्तर प्रदेश सरकार ने भी सभी अधिकारियों को गांव गोद लेने का आदेश दिया। यह ऐसे गांव थे जहां कुपोषित बच्चों का आंकड़ा ज्यादा था। प्रदेश सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि ऐसा करके वह राज्य से कुपोषण को खत्म करना चाहते हैं। जब इन गांवों से कुपोषण खत्म होगा तो दूसरे लोग भी प्रेरित होंगे। ऐेसा ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि गोद लिए गांवों के विकास को देखकर दूसरे गांव में भी विकास पहुंचेगा।
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। गांवों को गोद लेकर नेता और अधिकारी उन्हें भूल गए। दोबारा न तो वह गांव गए और न ही इन गांवों के लिए विकास की कोई योजनाएं बनाईं। यानी यह भी एक राजनीतिक पैंतरा ही साबित हुआ। वोट बटोरने का एक हथकंडा। दिल्ली में भाजपा को मिली हार और इस बार केंद्र में कांग्रेस की बिगड़ी हालत देखकर मौजूदा सरकारों को सबक लेना चाहिए। क्योंकि हर पांच साल जनता अपनी सरकार चुनती है। पुरानी सरकार को बदलने और नई को बनाने का लोकतांत्रिक अधिकार लोगों के पास सुरक्षित है।
गोद लेकर गांव भूल गए नेता और अधिकारी
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