हाल में सरकार के आसूचना ब्यूरो की एक रिपोर्ट ने गैर सरकारी संस्थाओं पर सीधा निशाना साधा। रिपोर्ट को सरकार के फैसलों पर सवाल उठाने वालों के खिलाफ पहला कदम माना जा रहा है। एक आज़ाद देश में संस्थाओं पर ऐसी निगरानी करना और असहमति को जगह ना देना – एक गंभीर मुद्दा है।
खूफिया ब्यूरो देश के लिए से खोजबीन करता है और उनके द्वारा बनाई जाने वाली रिपोर्ट सिर्फ सरकार के लिए होती है। गैर सरकारी संस्थाओं के काम पर ये रिपोर्ट कहती है कि कुछ संस्थाओं को बाहरी देशों से पैसा मिलता है। रिपोर्ट के अनुसार यह संस्थाएं देश के विकास के लिए रुकावटें पैदा कर रही हैं। इनमें ज़्यादातर ऐसी संस्थाओं और कार्यकर्ताओं का नाम है जो जल, जंगल, ज़मीन के साथ खेती और किसानी के मुद्दों पर काम कर रही हैं। उनका काम सरकार की कई नीतियों पर सवाल उठाता है। कुछ ऐसे कार्यकर्ता हैं जो लंबे समय से परमाणु हथियारों के खिलाफ काम करते आ रहे हैं। इन सभी ने समय समय पर सरकार और बड़ी कंपनियों के रिश्तों पर भी सवाल उठाया है।
इस रिपोर्ट पर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई है। इसे संस्थाओं के काम पर रोक और विरोधी आवाज़ों को चुप करने की कोशिश माना जा रहा है। रिपोर्ट में जो तर्क रखे गए हैं उन से साफ है कि सरकार की नीतियों के खिलाफ जो कोई काम कर रहे हैं उन पर सरकार की नज़र है और उनके काम को बंद कराने की मंशा।
कई कार्यकर्ताओं से मिलकर बनी आशा संस्था के अनुसार ये सरकार का अपने विरोधियों पर लगाम देने की ओर पहला कदम है। संस्थाओं के काम को विकास में बाधा बताकर इस रिपोर्ट से सबसे ज़्यादा एक बात परेशान करती है – क्या अपने खिलाफ उठती आवाज़ों को इस तरह शांत करेगी सरकार?
गैर सरकारी संस्थाओं पर उठी उंगली
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