61 वर्षीय दलित कार्यकर्ता भानू वणकर की 16 फरवरी रात 10 बजे एक निजी अस्पताल में मौत हो गई। वणकर एक रिटायर्ड तलाटी (पटवारी) थे और आरडीएएम से जुड़े रहे थे। उन्होंने 17 जनवरी को अपने साथी हेमा वणकर और रामा चमार के साथ मुख्यमंत्री रूपाणी को पत्र लिखकर कहा था कि अगर समी तालुका के दूधका गांव में दलितों को जमीन आवंटित नहीं होती, तो वे खुद को आग लगाकर आत्मदाह कर लेंगे।
दूधका गांव के दलित लगभग तीन साल से जमीन आवंटन की मांग कर रहे हैं। दलितों ने योजना के तहत पैसा भी जमा करवा दिया था। जिलाधिकारी ने एक हफ्ते के भीतर जमीन आवंटन की प्रक्रिया शुरू करने की बात कही है।
लेकिन, जमीन आवंटन में हो रही देरी के खिलाफ उन्होंने आत्मदाह कर लिया। जिसके बाद उनकी मौत हो गयी।
एक अंग्रेजी अख़बार के अनुसार, वडगाम के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी ने घटना पर नाराज़गी जताते हुए अपनी प्रेस रिलीज़ में इसे ‘सरकारी हत्या’ कहते हुए इसका विरोध करने की बात कही थी है। मौजूदा खबर के अनुसार, जिग्नेश मेवानी और उनके साथियों को हिरासत में ले लिया है।
मेवाणी ने मामले में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को निलंबित करने की मांग करते हुए कहा, ‘हम चाहते हैं कि मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाए और घटना के लिए जिम्मेदार राजस्व और पुलिस अधिकारियों का नाम भी एफआईआर में दर्ज किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी अभी तक पीड़ित परिवार से मिलने भी नहीं गए, जो गांधीनगर के अस्पताल में है।’
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने दलित कार्यकर्ता के आत्मदाह के प्रयास की जांच का आदेश भी दे दिया था।
वहीं, विपक्ष इसके लिए पीएम मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहा है. अहमदाबाद में रोड जाम करके प्रदर्शन कर रहे हैं लोग।
गुजरात गृह मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने जमीन से जुड़े सभी कागजात मंगाएं हैं और आगे जाँच के आदेश दिए हैं. इसी बीच लोगों ने भाजपा विधायक को करसन भाई सोलंकी को सड़कों पर दौड़ाया।