भारत का रुपया सस्ता होता जा रहा है। पूरे साल में इस बार करीब बीस प्रतिशत तक रुपए का दाम गिरा है। सरकार परेशान है, जनता परेशान है। आखिर सब परेशान क्यों हैं? इसके लिए देश की अर्थव्यवस्था को समझना पड़ेगा। जैसे देश के भीतर व्यापार होता है वैसे ही एक देश दूसरे देश से भी व्यापार करता है। लोग पेट्रोल पंप से पेट्रोल, डीजल भराते हैं। पर क्या कभी सोचा है कि ये पेट्रोल और डीजल पंप में कहां से आता है। भारत में खनिज तेल के कुएं हैं नहीं। इसे दूसरे देशों से खरीदा जाता है। ईरान, ईराक, लीबिया, साऊदी अरब जैसे देशों से। सरकार से पेट्रोल पंप के मालिक और वहां से आम जनता खरीदती है। अब रुपया सस्ता हो गया है। पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो हमें वही कीमत चुकानी पड़ेगी। अगर दूसरे देशों से कोई चीज खरीदते हैं तो अमेरिकी डॉलर में कीमत चुकाएंगे। एक डॉलर पहले 45-50 रुपए का था लेकिन अब ये 67-68 रुपए का हो गया है। एक डॉलर के बदले पहले हम 45-50 रुपए देते थे, लेकिन अब 67-68 रुपए देंगे। जब सरकार ज्यादा पैसा चुकाएगी तो वो पेट्रोल पंप में महंगा पेट्रोल, डीजल बेचेगी। दूसरी तरफ हम जिन चीजों को दूसरे देशों में बेचते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मूल्य कम हो जाएगा। ऐसे में जनता को मिलने वाली सरकारी छूट कम होगी। यानी महंगाई तो बढ़ाएगा ही गिरता हुआ रुपया। चिंता की बात यह है कि सरकार ने अभी तक रुपए की गिरती कीमतों को रोकने की कोई ठोस कोशिश नहीं की है। इस बीच अमेरिका सीरिया पर भी हमला कर सकता है। सीरिया मध्य एशिया में पड़ने वाला देश है। कच्चे तेल के सबसे ज्यादा कुएं वहीं हैं। ऐसे में पेट्रोल, डीजल और महंगा होगा।
गिरता रुपया, बढ़ती महंगाई
पिछला लेख
पानी बचाने का सुनहरा इतिहास- बावली
अगला लेख