जिला बनारस में सरकार के तरफ से बिजली के सुविधा हर में मिल हव। लेकिन देखल जाए त कई गावं अईसन हव जउन बिजली के देखे खातिर के तरसत हव।
गावं हो या शहर सरकार के तरफ से हर जगह बिजली मिले के चाही। इ योजना के बावजूद भी कई अइसन गावं हव जहां बिजली के नाम नाहीं हव। खाली मोमबत्ती से काम चलत हव। सरकार गावं वालन खातिर के करोड़ो रूपिया खर्च करत हव कि गावं वालन के बिजली मिल जाए। बिजली से आम आदमी से लेके किसान तक परेषान हयन। कहीं खाली खम्भा लगल हव त कहीं खाली तार लटक रहल हव। अगर सरकार गावं में योजना चला देहले हव त ओकर जाँच भी त करवावे के चाही। जेकरे उपर बिजली के जिम्मेदारी सौपंल हव ओके गावं वालन के बिजली के समस्या के धियान देवे के चाही। लेकिन जब अधिकारी लोग से पूछा त ओन कहीयन कि गावं से कउनों षिकायत नाहीं आवत हव। इहां तक की अधिकारी के त एतना नाहीं मालूम रहत कि कउन गावं में बिजली हव कउन गावं में नाहीं हव। जैसे दुमितवा गावं में दम साल से खम्भा लगल हव तार के अभहीं तक अता पता नाहीं हव। आउर कई गावं में बिजली ना रहे से किसान परेषान रहलन। लेकिन अधिकारी के कउनों चिन्ता नाहीं हव। जब सरकार गरीबन के एतना सुविधा देत हव त ओसहीं सुविधा के जाँच भी करवावे के चाही।
गावं गावं तक नाहीं पहुंचत बिजली
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