नीति आयोग ने देश के गांवों में किये गये बिजलीकरण को लेकर जो रिपोर्ट पेश की है, जिसमें साफ बताया गया है कि सरकार जिन गांवों में बिजलीकरण का काम पूरा कर लिये जाने का दावा करती है, उनमें से ज्यादातर गांवों के लोग अब भी लालटेन युग वाली रात बिता रहे हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि कर्इ गांवों के लोगों को सरकार के इस अभियान का लाभ नहीं मिला है। इसका मतलब साफ है कि सरकार ने गांवों में बिजलीकरण के मामले में केवल कागजी घोड़ा दौड़ाने का काम किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के ग्रामीण विद्युतीकरण अभियान से लाभान्वित होनेवाले कई गांवों के काफी घरों में अब भी अंधेरा है। उन्हें इसका फायदा ‘नहीं’ हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययनों से यह सामने आया है कि पूर्व में कनेक्शन देने की योजनाओं और अब दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेवाइ) के बावजूद स्थिति में विशेष बदलाव नहीं आया है। बिजली पहुंच की स्थिति में खास सुधार नहीं हुआ है।
प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त, 2015 को लालकिला से अपने संबोधन में कहा था कि अगले एक हजार दिन में बिजली सुविधाओं से वंचित 18,452 गांवों में बिजली पहुंचा दी जायेगी। इसके लिए एक मई, 2018 की डेडलाइन तय की गयी है।
बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने मई में कहा था कि इन 18,452 गांवों में से 13,516 में बिजली पहुंचा दी गयी है। 944 गांवों में आबादी नहीं है जबकि बाकी बचे 3,992 गांवों का एक मई, 2018 तक विद्युतीकरण कर दिया जायेगा। इस दिशा में काम चल रहा है।
नीति आयोग ने राष्ट्रीय ऊर्जा नीति ने लिखित में बताया है कि अभी भी 30।4 करोड़ नागरिक बिजली की सुविधा से वंचित हैं। 50 करोड़ लोग खाना पकाने के लिए जैव ईंधन पर निर्भर हैं। उन्हें अभी तक एलपीजी नहीं मिली है। देश को अभी ऊर्जा सुरक्षा हासिल करने के लिए काफी इंतजार करना होगा। सच्चाई सरकारी दावों से एकदम अलग है।
नीति आयोग की यह रिपोर्ट इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है, वह सीधे अपने अध्यक्ष प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है। नीति आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया हैं। सरकार के नीति निर्धारण में नीति आयोग के विचारों को शामिल किया जाता है। रिपोर्ट पर टिप्पणी की तारीख 24 जुलाई कर दी है।