
खेल में रूचि का क्या इतिहास है?
मुहल्लों की गलियों में पापा और भाई-बहन के साथ छह साल की उम्र से खेलना षुरू किया। धीरे-धीरे स्कूल में बाज़ी मारी। तब मुझे स्टेडियम में खेलने की इजाज़त मिली। वहीं से सफर शुरू हुआ। मेरा मुख्य खेल क्रिकेट है। इसके अलावा गोला फेंक, भाला फेंक और खो-खो जैसे खेलों में भी राष्ट्रीय जीत हासिल कर चुकी हूं।
आपका क्या सपना है?
एक षानदार क्रिकेटर बनने का सपना है। इस क्षेत्र में कम लड़कियां हैं। इसलिए मेरे माता-पिता और स्कूल के प्रिंसिपल और टीचर का प्रोत्यसाहन ज़रूरी था। सबसे बड़ा हाथ स्टेडियम के खिलाड़ी टीचर का रहा है। मैं इन सब के सपने पूरे करना चाहती हूं।