हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एक नाबालिग, बलात्कार की शिकार हुई लड़की के गर्भ में पल रहे 24 हफ्ते के ‘असामान्य भ्रूण’ को गिराने की इजाज़त दे दी है। कोर्ट ने ये आदेश इस आधार पर दिया है कि अगर भ्रूण गर्भ में पलता रहा तो महिला की शारीरिक और मानसिक स्थिति को गंभीर ख़तरा हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971′ के प्रावधान के आधार पर ये आदेश दिया है। क़ानून के इस प्रावधान के मुताबिक 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की अनुमति उसी स्थिति में दी जा सकती है जब गर्भवती महिला की जान को गंभीर ख़तरा हो।
यह केस गर्भपात कानून में बदलाव की पहल है, हालांकि इस तरह की पहल पहले भी होती रही है।
2008 में हरेश और निकेता मेहता ने मुंबई हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर 26 हफ्ते के गर्भ में हृदय संबंधी कुछ रोग होने के कारण गर्भपात की इजाजत मांगी थी। पर हाईकोर्ट ने याचिका इस आधार पर खारिज कर दी कि डॉक्टर ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि जन्म के बाद बच्चे में कोई बड़ी स्वास्थ्य सम्बन्धी कमी पैदा होगी। संयोग से, निकेता का गर्भपात हो गया।
इसी तरह, पिछले साल गुजरात से एक 14 वर्षीय बलात्कार की शिकायतकर्ता की याचिका कोर्ट में आई। इस मामले में लड़की का गर्भ 20 सप्ताह की समय सीमा पूरी कर चुका था। इस याचिका को अनुमति प्राप्त हुई लेकिन इसे एक ‘विशेष मामले “के रूप में लिया गया, जिसका अर्थ है कि यह सिर्फ इसी मामले की सुनवाई के लिए है इसे किसी और मामले के लिए उदहारण स्वरूप इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
सवाल यह है कि किस सीमा तक गर्भपात के कानून में बदलाव किया जा सकता है? प्रारूप गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम (संशोधन) बिल, 2014, जिसके अनुसार 20 और 24 हफ्ते के गर्भ का तभी गिराया जा सकता है जब डॉक्टरों की राय में इसके कारण माता के स्वास्थ्य को बड़ा नुकसान होने की गंभीर समस्या हो।
गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम 1971, साधारण तौर पर इस कानून के अनुसार कुछ विशेष परिस्थितियों में 12 से 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराने की व्यवस्था दी है। यह कानून 45 साल पुराना है, जो उस वक्त की जांचों पर आधारित है। इस कानून के अनुसार कानूनी तौर पर गर्भपात केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है जैसे-
-जब महिला की जान को खतरा हो।
-महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।
-गर्भ बलात्कार के कारण हुआ हो।
-पैदा होने वाले बच्चे का उचित विकास गर्भ में न हुआ हो और उसके विकलांग होने का डर हो।
-12 हफ्तों तक के गर्भ को स्त्री विशेषज्ञ की सलाह से गर्भपात संभव है।
-12 से 20 हफ्ते के गर्भ को गिराने के लिए दो महिला डॉक्टरों की राय जरूरी है।
गर्भपात का अधिकार, महिलाओं के लिए जीवन के अधिकार का एक भाग है। यह महिलाओं को मिलना चाहिए। ऐसी भी परिस्थिति होती है, जिसमें गर्भपात करवाना ज्यादा नैतिक और तर्कसंगत लगता है। जैसे कि गर्भधारण के कारण यदि माता के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो। साथ ही अगर टेस्ट में यह पाया जाए कि गर्भ में पल रहे बच्चे में कुछ असाधारण बीमारी, अपंगता या सही तरह से विकास नहीं हुआ है तो क्या माता गर्भ गिराना चाहे तो यह गलत या अनैतिक होगा? ऐसे बहुत से प्रश्न हैं, जिनका उत्तर अभी नहीं है!
गर्भपात के कानून को किस सीमा पर बदलने की जरूरत है?
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