सरकारी नियम का रखवाला प्रशासन किसानन के एक मात्र सहारा खतौनी सील कइके आखिर किसानन के हित मा का करिस, मात्र किसानन का नुकसान। एक तौ वहिसे किसान फसल बरबादी से परेशान रहत हैं। ऊपर से खतौनी सील कइके प्रशासन मिलै वाले खाद बीज का भी छीन लिहिस। साथै अउर भी सरकारी योजनन का लाभ व काम नहीं करा सकै। खेती का लेन देन भी रूक जात है। सोचै वाली बात है कि आठ साल से अगर किसान इं लाभ का फायदा नहीं उठा पावैं तौ सिर्फ प्रशासन के कारन।
सवाल या उठत है कि या मामला निपटावैं मा प्रशासन काहे चुप्पी साधे है? का इनतान का भी नियम है कि खतौनी का यतना लम्बे समय तक सील करे रहंै? प्रशासन का किसानन के समस्या से का कउनौ लेना देना निहाय? यतने दिन से जमा खतौनी तौ यहै बतावत है कि प्रशासन का परवाह होत तौ आज का मामला सुलझ जात। अगर सच मा इनतान के बात है, तौ प्रशासन का डंका बजावब शोभा नहीं देत कि वा किसानन के हित मा योजना चला के उनका लाभ देत है। अगर लाभ है, तौ हर समय नई-नई समस्यन का सामना करैं का। या बात तौ है कि या मामला अदालत मा चला गा है। माना जात है कि जबै मामला अदालत मा जात है, तौ अदालत के नियाव का इंतजार करैं का परत है। अदालत मा भी कानून के रक्षक एक किसान का लड़का ही होत है। फिर वा या समस्या का काहे नहीं समझैं। समस्या का समझैं खातिर किसान मड़ई के ही जरूरत है नियम कानून के रखवालन के नहीं। अब उंई किसानन का आपन खतौनी पावैं खातिर अउर केतने साल का इंतजार करैं का परी।
गजब के है सरकारी नियम
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