सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना के तहत आदमियन खे जांब कार्ड बनवाये हें। जीमें आदमियन खा सौ दिन को रोजगार ओर समय से रूपइया मिले जेसो नियम हे, पे सरकार की जा सुविधा खा लाभ आम जनता तक कित्तो पोंहचत हे। जा अधिकारी पलट खे काय नई देखत आय?
ई समस्या को ताजा उदाहरण हे चरखारी ब्लाक के सालट गंाव के आदमियन खे जांब कार्ड। जोन सन् 2006-7 में बने हते, पे अगर काम देखो जाय तो एकऊ दिन को नई मिलो आय।
का सरकार ने जांब कार्ड बनाके घरन में धरे खे लाने दये हें। अगर सरकार ने जाब कार्ड बनवाये हें ओर सौ दिन काम मिले जेसो नियम लागू करो हे तो ऊखो पलट के काय नई देखत आय कि आदमियन खा काम मिलत हे कि नई? जाब कार्ड बने खे बाद भी जनता बेरोजगार होके बेठी रहत हे तो सरकार की जा योजना लागू करे से का लाभ? अगर देखो जाय तो गांव में मनरेगा काम के अलावा कोनऊ काम नई मिलत आय। एई से आदमी परदेश जाये खा मजबूर हो जात हे। ऊसई तो सरकार ने एक-एक गांव में पांच-पांच सौ जांब कार्ड बनवाये हंे, पे अगर काम मिले खा देखो जाय तो सौ डेढ़ सौ आदमी से ज्यादा आदमियन खा काम नई मिलत आय। जभे सरकार के एते इत्ते आदमियन खा काम नइयां तो इत्ते जांब कार्ड काय बनवाउत हे?
जाब कार्ड में सौ दिन को रोजगार देय को ओर काम न मिले में सौ दिन दिन काम को रूपइया मिले को नियम हे। गांव के आदमियन से पूछो जाय तो जो योजना बिल्कुल खोखली नजर आउत हे। जा बात की जानकारी होय खे बाद भीे आदमियन खा जाब कार्ड में काम नई मिलत आय। ओर ऊ मजबूर हो के परदेश खा पलायन करत हंे। फिर बड़े अधिकरी ई समस्या खा नजर अन्दाज काय कर देत हे?