मुम्बई की शारदा उग्र जब अपने काम के बारे में बताती हैं तो उनकी आंखों में अलग ही चमक दिखाई देती है। ‘मैं कभी भी बेहतरीन खिलाड़ी नहीं थी पर मुझे क्रिकेट और अन्य खेल देखने और उनके बारे में लिखने का बहुत शौक था। उस ज़माने में तो ऐसे भी माना जाता था कि महिलाओं का ऐसे खेलों से तो कोई तालुक हो ही नहीं सकता पर 1989 में मुझे मुम्बई में मिड डे नाम के अखबार में खेल की खबरें लिखने का मौका मिला।’
क्रिकेट पर लिखने वाली आज खुद एक वरिष्ठ पत्रकार, शारदा ने बताया कि शुरुआत में उनके साथ के पुरुष पत्रकारों को बड़ा अजीब लगता था। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी जगह बनाई। ‘आज टी.वी. पर कई महिलाएं हैं जो खेल की खबरें करती हैं पर खेल जगत में देखें तो महिला खिलाडि़यों को तक बराबर दर्जा नहीं दिया जाता है। यह स्थिति दुनियाभर में है। जब तक कोई महिला खिलाड़ी बहुत ऊंचा मुकाम न हासिल करे तब तक उसके बारे में कोई नहीं लिखता है।’
इस समय बेंगलूरू शहर में रहकर शारदा क्रिकेट के बारे में सबसे बड़ी वेबसाइट के लिए खबरें लिखती हैं। 2013 में उन्हें राष्ट्रीय महिला आयोग ने खेल पर लिखने वाली पहली महिला पत्रकार होने के लिए सम्मानित किया था।
खेल पत्रकारिता में पहली महिला
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