खाद्य सुरक्षा अधिनियम को राष्ट्रपति ने अपने हस्ताक्षर से एक कदम और आगे बढ़ाया। एक तरफ कहा जा रहा है कि ये अधिनियम 2014 के लोक सभा चुनाव को जीतने के लिए सरकार की चाल है और दूसरी और ये अनदेखा करना मुश्किल है कि ये अधिनियम देश के दो तिहाई हिस्से तक कम दामों में अनाज पहुंचाएगा। भारत उन देशों में गिना जाता है जहां सबसे ज्यादा भुखमरी है। आज भी हमारे देश में दो करोड़ से ज्यादा लोग कुपोषण का शिकार होने के खतरे में हैं। आज भले ही हम चांद तक पहुंच गए हों लेकिन हर व्यक्ति को दो वक्त की रोटी की गारंटी अब भी नहीं दे सकते हैं।
खाना एक ऐसा मुद्दा है जिसके लिए आज की तारीख में हमारे देश में कानून की सख्त ज़रुरत है। आज गरीब जनता तक अनाज पहुंचता ही नहीं क्योंकि वो उसका दाम नहीं भर सकते हैं। इसलिए सरकार जनता को कम दामों में अनाज देने की गारंटी दे रही है और उसके हिस्से का बाकी पैसा खुद भर रही है। ज़रूर, ये अधिनियम अगर पारित हुआ तो अच्छी बात होगी लेकिन क्या इसे भी लागू करने में वही दिक्कते आएंगी जिससे आज मनरेगा जैसी योजनाएं जूझ रही हैं। सरकार को सवा सौ करोड़ रुपये खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम में लगाने होंगे। अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए उपाय निकालने होंगे और जमीन को खेती के लिए रखना होगा, न कि उसपर व्यवसाय शुरू करने होंगे। साथ ही यह भी देखना ज़रूरी होगा कि खाद्य सुरक्षा का फायदा उन्हीं लोगों को मिले जो सर्वे के तहत गरीब हों और इस कार्यक्रम के लाभार्ती हों। 2011 में शुरू हुआ सर्वे जारी है और उत्तर प्रदेश में चल रहा है।
इन सभी उम्मीदों के साथ यह अधिनियम संसद में पास हो जाए और इसे लागू करने में सरकार दक्षता दिखाए।
खाद्य सुरक्षा सबका अधिकार
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