जून 2015 में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के पांच पत्रकारों पर हमले हुए। दो पत्रकारों की मौत हो गई और बाक़ी गम्भीर रूप से घायल हुए। इन पत्रकारों ने कई ज़मीनी सच्चाइयों का पर्दाफ़ाश किया था।
इनपर हुए हमलों ने ऐसी कई घटनाओं की याद ताज़ा कर दी जब खबर लहरिया के पत्रकारों को खबर इकट्ठा करते समय डराया, धमकाया या छेड़ा गया है। 2012 में बांदा शहर के एक मोहल्ले में कुछ गुंडों ने मुझे घेर लिया था। मेरा कैमरा उन्होंने छीनकर मेरे हाथ में रखे खबर लहरिया अखबार को अपने पैरों से कुचल दिया। ये ऐसे लोग थे जिन्होंने एक औरत का घर और ज़मीन हड़प ली थी। बाँदा के डी एम कार्यालय में आई इस औरत से सारे ब्योरे लेकर मैं इस मोहल्ले में दूसरे पक्ष के लोगों से बात करने आई थी। घर की फोटो मैंने जैसे ही ली वैसे ही ये लोग भड़क गए। मेरा पहचान पत्र माँगा, मुझे गालियां दीं और यह आरोप लगाया कि मैं उनका घर लूटने आई थी। वहां से निकलने के बाद मैं सिविल लाइन पुलिस चौकी पहुंची लेकिन चौकी प्रभारी ने रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया। कहा वो लोग दबंग हैं, हमें मामला यहीं कर देना चाहिए। ऐसे में पत्रकार होने के नाते हम क्या कर सकते हैं? शायद यही सवाल आज कई पत्रकारों के मन में है। अपने ही राज्य में कुछ पत्रकारों से इस मामले में बात की तो सभी का अनुभव कुछ ऐसा ही था। दबंगों ने मार -पीट की और पुलिस ने रिपोर्ट लिखने में आना -कानी या देर की। दबाव और धमकियों के माहौल में आज भी कई पत्रकार काम कर रहे हैं। कुछ ऐसे ही पत्रकार उन ज़िलों में हैं जहां खबर लहरिया का काम है। इनमें से कुछ हमारे अपने साथी हैं जो असुरक्षा के माहौल में कभी समझौते करते हैं, कभी खबर को दबाते हैं तो कभी उसे उजागर करने के तरीके भी ढूंढ निकालते हैं। अक्सर अकेले काम करते हुए उन्हें महसूस होता है कि उनका साथ देने वाला कोई नहीं है – उनका अपना अखबार या टेलीविज़न चैनल भी नहीं। महिला पत्रकार होने के नाते हम अक्सर दबाव, ताने, धमकियों और छेड़ -छाड़ के बावजूद अपनी खबर पूरी करते हैं। छोटे कस्बों में ये पत्रकार कैसे काम करते हैं, यह जानने के लिए हमने उनसे बात -चीत की और उनके अनुभव गहराई से जाने।
’20 जून को मेरे पास फ़ोन आया। एक व्यक्ति ने मुझे चित्रकूट ज़िले में कहेटा माफी इलाके में पैसुनी नदी में बालू के अवैध खनन पर जानकारी दी। मैं अपनी मोटरसाइकिल से वहां पहुंचा। खनन की तस्वीरें लीं और वहां अवैध रूप से काम होते देखा। कुछ लोगों ने मुझसे ऐसा न करने को कहा। मैंने कहा कि मैं अपना काम कर रहा हूँ। जैसे ही मैं वहां से निकला, चार लोगों ने मेरी मोटरसाइकिल को घेर लिया। मेरा कैमरा, फ़ोन और रुपये छीन लिए और बुरी तरह से बन्दूक की नलियों से पीटा। मैं कसी तरह से वहां से पहाड़ी थाने पहुंचा। वहां मैंने रिपोर्ट दर्ज करवानी चाहिए। जब थाने में पुलिस का रवैया ठीक नहीं लगा तो चित्रकूट के एस पी के पहुंचा। तब जाकर थाने में रिपोर्ट लिखी गई। रावेन्द्र सिंह और धीरेन्द्र सिंह नाम के दो आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और उनपर चोरी का केस दर्ज किया गया है। अवैध खनन में नेता, मंत्री, पुलिस और स्थानीय सत्ताधारी लोग शामिल हैं। इसी वजह से खनन के पट्टे रद्द होने के बावजूद यह काम खुले आम चल रहा है। अशोक नामदेव, राष्ट्रीय सहारा , पहाड़ी क्षेत्र रिपोर्टर, चित्रकूट जिला ”इस शहर में भ्रष्टाचार का गढ़ है। ज़मीन से जुड़ा हुआ माफिया है जो किसी भी विभाग या अधिकारी की परवाह नहीं करता है। शहर में अंधा -धुंध कालोनियां बनी हैं। मैं इसपर लिखती हूँ तो खबरें या तो छपती ही नहीं हैं या फिर छपने के पहले ही अखबार के मालिकों और माफिया से जुड़े लोगों में समझौता हो जाता है। कभी -कभी मुझे भी चुप रहने के लिए पैसे भेजे जाते हैं। कभी यह पैसे ले भी लेती हूँ। मैं अकेली हूँ, मेरा परिवार और बच्चे हैं और ये ताकतवर लोग हैं। अगर मेरी खबरों के वजह से कुछ होगा तो भुगतना मुझे ही पड़ेगा। कोई मेरा साथ नहीं देगा। मैं खबरों को फिर भी लिखती हूँ। कभी अलग ढंग से तो कभी मुख्य मंत्री, पुलिस कमिश्नर और सूचना विभाग को पूरे ब्योरे फैक्स कर देती हूँ।’ शबनम , स्वतंत्र पत्रकार , पश्चिमी उत्तर प्रदेश (नाम बदला गया है)
‘महोबा ज़िले में 2013 में एक स्कूल की छत गिर जाने से एक औरत घायल हो गई। मैंने तीन दिन तक इस खबर के अलग -अलग पहलू उजागर किए – ठेकेदार की लापरवाही, सस्ता माल इस्तेमाल करने की सच्चाई और भूमि और बालू का अवैध रूप से खनन करने वाले लोगों की ऐसे काम में भूमिका। खबरों से बौखलाया ठेकेदार प्रदीप सिंह मेरे दफ्तर पहुंचा और मुझे पंद्रह हज़ार रूपए दिए कि इस खबर को मत निकालो। मैंने जब रूपए लेने से मना किया तो ठेकेदार कानपुर में अखबार के संपादक के पास पहुँच गया और मुझ पर पैसे मांगने का इलज़ाम लगाया।’ संतोष यादव, हिन्दुस्तान अखबार, ब्यूरो चीफ, महोबा जिला स्थानीय स्तर पर पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई कानून या मंच नहीं है। ठेकेदार, नेता और पुलिस की अवैध खनन में सांठ -गांठ रहती है । अक्सर खनन माफिया या सत्ताधारी लोगों के खिलाफ कदम उठाने पर पुलिसवालों का तबादला कर दिया जाता है। इस वजह से पुलिसवाले भी ऐसे मामलों में शिकायत आसानी से दर्ज नहीं करते हैं। उत्तर प्रदेश की सरकार का कहना है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक फ़ोन हेल्पलाइन बनाई जाएगी। लेकिन पत्रकारों को स्थानीय स्तर पर सुरक्षा मिले, इसका कोई इंतज़ाम नहीं है। छोटे कस्बों में और ग्रामीण इलाकों में सच्चाई का पर्दाफ़ाश करने वाले पत्रकार ऐसे माहौल में खतरा महसूस कर रहे हैं।