जि़ला चित्रकूट, ब्लाॅक कर्वी, कस्बा अकबरपुर, अमर ज्योति और नई बस्ती। यहां के ज़्यादातर लोग पहाड़ के पत्थर तोड़ने और क्रेशर मशीन में काम करते हैं। घर खर्च चलाने का बड़ा ज़रिया यही काम है। क्रेशर से उड़ने वाली धूल के कारण लोगों को कई तरह की बीमारियां हो रही हैं। यहां टीबी के कई मरीज़ आपको मिल जाएंगे।
अमर ज्योति बस्ती की बुंदिया का कहना है कि ‘मैं और मेरे पति रामजीत क्रेशर में काम करते थे। पति रामजीत को टीबी की बीमारी हो गई है। इलाज कराने के बाद भी उनको खांसी आती रहती है। अब वे कोई काम-धंधा भी नहीं कर सकते हैं।’
नई बस्ती के शिवचंदा का कहना है कि ‘दो साल से टीबी है। पेट में और छाती में दर्द रहता है। खांस-खांसकर बुरा हाल रहता है। चलने में चक्कर आता है। शिवरामपुर और कर्वी में इलाज कराया लेकिन कोई आराम नहीं मिला। अब दूसरी जगह से इलाज करा रहे हैं। डाॅक्टरों ने दो साल तक इलाज करवाने को कहा है।’
इसी तरह शांतिबाई बताती है कि ‘लड़के सनी की उम्र इक्कीस साल है। वह पहाड़ के पत्थर तोड़ने का काम करता था। सनी को दो महीने से बुखार खांसी आ रही है। कमज़ोर होता जा रहा है। उसका इलाज कराने के बाद भी आराम नहीं है। हमारे पास इतनी कमाई भी नहीं की नए गांव छावनी से इलाज करा सकंे। लड़का ही घर का खार्चा चलाता था। क्रेशर मालिक हमारी कोई मदद नही करते हैं।’ भरतकूप में लगभग दो सौ के्रशर मशीन हैं। इनमें सबसे ज़्यादा कोल जाति के लोग काम करते हंै। इसी से उनका खर्च चलता है। के्रशर मालिक का यह काम नहीं है कि वह मरीज़ का इलाज कराएं।
क्रेशर की धूल से पैदा होते टीबी मरीज़
पिछला लेख