अप्रैल का महीना आते ही आईपीएल क्रिकेट प्रतियोगिता की चर्चा शुरू हो जाती है – अखबार, टी वी, रेडियो की मुख्य खबरों में आईपीएल छाया रहता है। क्रिकेट के इस नए अवतार की पहचान है इसकी तेज़ रफ्तार, फिल्मी दुनिया से उसका जुड़ाव और शायद पैसे बनाने का एक बहाना? इन सभी में कहीं ना कहीं क्रिकेट का खेल खोता नज़र आ रहा है।
हाल में आई पी एल ‘स्पॉट फिक्सिंग’ के कारण खबरों में रहा है। लाखों रुपय खिलाड़ियों को दिए जा रहे हैं जिससे सट्टा लगाने वाले खेल का रुख तय कर सकें और पैसे कमायें। पर देखने वाले और इस खेल को प्रस्तुत करने वाले इस बात को गंभीरता से नहीं लेते। कहीं ना कहीं इस बात के पीछे भी सबका स्वार्थ छिपा है। भारतीय क्रिकेट का संचालन करने वाले बी सी सी आई के प्रमुख से लेकर आई पी एल की टीमों के छोटे खिलाड़ियों तक – सभी पैसों के हेर फेर में किसी ना किसी रूप में शामिल हैं। ये कोई छिपी बात नहीं है – पिछले साल पांच खिलाड़ी स्पॉट फिक्सिंग में सस्पेंड किये गए और इस साल अभी तक तीन खिलाड़ी हिरासत में हैं और बी.सी.सी.आई. के एन.श्रीनिवासन के दामाद से पूछताछ चल रही है।
आई.पी.एल. मैच के टिकट हज़ारों रुपयों में बेचे जाते हैं, खेल में परदे के पीछे अलग ही कहानी चलती रहती है जिसकी देखने वालों को और इस पर खर्च करने वाली आम जनता को कोई खबर नहीं लेकिन फिर भी सब कोई टी वी से चिपक कर देखेंगे आई.पी.एल. का फाइनल मैच, फिर भले ही इसका भी परिणाम पहले से तय हो ना हो।
क्यों है आई.पी.एल. से ऐतराज़
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