हाल ही में केंद्र सूचना आयोग ने फैसला किया कि देश की छह बड़ी राजनीतिक पार्टियां अब सूचना के अधिकार कानून के तहत जवाबदेह होंगी। इस अहम् फैसले का कांग्रेस पार्टी ने विरोध किया है जबकि इस ही कांग्रेस पार्टी की यू पी ए सरकार ने 2005 में बहुत बहस के बाद इस कानून को पारित किया था।
देखा जाए तो एक लोकतंत्र में नेताओं की जनता की ओर जवाबदेही तो उसका मूल आधार है पर यहां नेताओं में एक घबराहट नज़र आ रही है। सूचना आयोग का कहना है कि इन छह पार्टियों को केंद्र सरकार की ओर से योजनाओं को लागू करने के लिए करोड़ों रुपए दिए जाते हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि उनकी जवाबदेही भी उतनी ही ज़रूरी है। इन राजनीतिक दलों के फैसलों का आम लोगों की जिंदगियों पर गहरा असर पड़ता है। तो क्या ये ही आम लोग उनसे सवाल नहीं कर सकते?
केद्र मंत्री और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद का कहना है कि सूचना का अधिकार कानून अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है। नेताओं को चिंता है कि अब उन्हें गोपनीय जानकारी भी लोगों को देनी पड़ सकती है। लेकिन नेताओं के इस तर्क के पहले ज़रूरी है इस बात को समझना कि एक राजनीतिक दल भी सार्वजनिक संघ है और इस कानून के तहत वे कुछ जानकारी देने से मना कर सकते हैं। जैसा कि पूर्व सूचना अधिकारी शैलेश गांधी ने कहा – सूचना के अधिकार कानून का लक्ष्य है कि जो जानकारी रिकार्ड में मौजूद है, वो हर किसी नागरिक के लिए उपलब्ध बनाई जाए।
क्यों सूचना के अधिकार से घबराए नेता
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