पत्रकारिता को हमेशा से हर देश के लिए खास माना गया है। किसी सरकार पर सवाल उठाना, दबे हुए समुदायों के मुद्दों को सामने लाना और समाज और राजनीति पर अलग-अलग विचारों को जनता के सामने रखना, पत्रकारिता के ज़रिए ही हो सका है। किसी भी देश की सरकार पर बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है जब वहां के पत्रकारों को अपनी बात रखने की आज़ादी ना हो या जब बात रखने पर उन पर जानलेवा हमले होने लगें।
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हमीद मीर पर कुछ लोगों ने गोलियां चलाईं और मीर का सीधा आरोप सरकारी खूफिया एजेंसी आई.एस.आई. पर लगा। इसके पहले भी मीर को मारने की कोशिश की जा चुकी है। इस सब के बाद भी सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है। मीर ने हमेशा से आई.एस.आई. के बारे में विवादित मुद्दों को उठाया था।
आई.एस.आई. का शुरू से ही पाकिस्तान की सरकार पर गहरा असर रहा है। आसपास के देशों के बारे में जानकारी रखना और यह तक तय करना कि किस देश के प्रति पाकिस्तान का क्या रवैया रहेगा – सभी मामलों में आई.एस.आई. की बात को महत्व दिया जाता है। पाकिस्तान में भी कई लोगों का मानना है कि आई.एस.आई. के पास ज़्यादा ही छूट और सत्ता है। जब इस आई.एस.आई. पर मीर ने सवाल उठाए, तभी से उन पर काफी दबाव था। इसे देश की और सरकार की छवि के लिए बुरा माना जा रहा था। पर क्या इसका मतलब है कि पत्रकारों पर सरकार और सरकारी संस्थान किसी भी तरह का दबाव डाल सकते हैं?
पत्रकारों की आज़ादी पर इस तरह हावी होना किसी भी सरकार के बारे में बहुत कुछ कहता है। सरकारों का पत्रकारों की सुरक्षा पर चुप्पी साध लेना और अपने खिलाफ उठती आवाज़ों पर पाबंदी लगाना – यह देशों की आम जनता की आज़ादी के लिए भी चिंता का बड़ा मुद्दा है।
क्या हम सरकार के खिलाफ कुछ कह सकते हैं?
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