12 फरवरी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधान सभा में बजट पेश किया हैं। बजट कि धनराशि 3,46,935 करोड़ों रुपये हैं जो 2014-2015 के हिसाब से 146 प्रतिशत ज्यादा हैं। पर क्या यह प्रतिशात काम भी आयेगा या नाम के लिए बजट पेश किया गया है? सरकार ने बजट में कई नई योजनायों को भी शामिल किया है। अच्छी बात है कि बजट पेश हो गया है क्योंकि 29 फरवरी को आम बजट भी पेश हो जायेगा। उत्तर प्रदेश में इस समय कई तरह की योजना तो सरकार ने चलाई थी पर उनके बजट आज भी लोगों को फायदा नहीं पहुंचा पाया हैं। उदाहरण देखे तो समाजवादी पेंशन को ही लें तो लाखों एैसे लोग दर दर भटक रहें है जानकारी लेनें के लिए कि उनको इसका लाभ कैसे मिलेगा पर आने वाले वर्ष के लिए सरकार ने फिर से समाजवादी पेंशन योजना के लिए 45 लाख से 55 लाख का दायरा बढ़ा दिया है सोचनें वाली बात हैं कि हर वर्ष बजट पेश किये जातें है पर क्या उसको पलट कर भी देखा जाता हैं। कितना किस चीज में खर्च किया गया है। बचा हुआ पैसा आखिर कहां गया है। बजट बस पेश कर देना ही क्या जिम्मेदारी है सरकार की? या उस पर पहल भी करनें की जिम्मेदारी बनती है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड में तो सूखे से परेशान हैं। किसान बारिश न होने से परेशान है। आकाल की स्थिति पैदा हो रही है, पर सरकार ने उससे निपटने के लिए कोई बजट नहीं रखा। बल्कि बाढ़ नियंत्रण के लिए 7.45 करोड़ का बजट है।
अखिलेश सरकार ने बुंदेलखण्ड के लिए कई नई योजनाओ के लिए बजट तैयार किया है। जैसे स्मार्ट विलेज मतलब क्या नाम से तो नाम से जनता को भी नहीं पता है। स्मार्ट विलेेज का मतलब एक ऐसा गांव जहां हर तरह कि सुविधाएं उपलब्ध हों। क्या नाम बदल देने से गांव का स्वरुप बदल सकता है। क्या अब मुख्यमंत्री मोदी की टक्कर लेना चाहते है? हम डाक्टर राममनोहर लोहिया समग्र गांव की दशा देखें तो ऐसा लगता है कि वह गांव भी विकास से कोसों दूर है। जबकि इन गांव में हर तरह की सुविधा होना चाहिए। क्या यह कभी स्मार्ट विलेज बन पाएगा? सरकार ने बजट में बुंदेलखण्ड पैकेज की भी बात की है। पर क्या यह एक राजनीतिक घोषणा है?
या सच में जमीनी स्तर से परेशान लोगों की दिक्कतों को खत्म किया जाएगा। क्योंकि बुंदेलखण्ड के महोबा, चित्रकूट और बांदा जिलों कि बात करें तो किसानों को मुआवजा नहीं मिला है। उदाहरण देखें तो महोबा जिला के जैतपुर ब्लाक के बीस किसानों का कहना है कि उनको आज तक कोई मुआवजा नहीं मिला है।
क्या सच में बजट का कुछ हिस्सा लोगों तक पहुंचेगा?
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