ग्रामीण ओडिशा में वर्ष 2015 में किए गए एक शोध अध्ययन के अनुसार, महिला स्वास्थ्य कर्मचारी भले ही मातृ स्वास्थ्य सेवा में पहल का नेतृत्व करती हों, लेकिन पुरुष स्वास्थ्यकर्मी उनकी सेवाओं में महत्वपूर्ण रूप से सहायक हो सकते हैं।
अध्ययन के अनुसार, मातृ स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में पुरुषों को शिक्षित करने और उनके फैसलों के मार्गदर्शन में पुरुष स्वास्थ्यकर्मी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। वे दूर-दराज क्षेत्रों में और देर के घंटों तक स्वास्थ्य सेवाएं देने में महिला स्वास्थ्य श्रमिकों की भी सहायता कर सकते हैं।
हालांकि, यह भारत में मुश्किल साबित हो सकता है। भारतीय गांवों में 48 फीसदी स्वास्थ्य उप-केंद्रों में एक भी पुरुष स्वास्थ्यकर्मी नहीं है। ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी-2016 के अनुसार, स्वास्थ्य केंद्रों में 65 फीसदी पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है।
इस बात में कोई शक नहीं है कि भारत को अपनी मातृ-स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करना होगा। इसमें स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच एक बड़ा कारण है। वैश्विक स्तर पर तीन लाख तीन हज़ार मातृ मौतों में से भारत का हिस्सा पांचवां है । वैश्विक स्तर पर नवजात शिशुओं की मौत के मामले में 26 फीसदी मौतें भारत में हर साल होती हैं।
पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों की भूमिका जानने के लिए अध्ययन में महिला स्वास्थ्यकर्मियों के काम में सहायता के लिए पुरुषों को नियुक्त और प्रशिक्षित किया गया। अध्ययन के निष्कर्षों और अन्य आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से ऐसे तीन कारकों का पता चलता है कि क्यों पुरुष स्वास्थ्यकर्मी मातृ एवं नवजात शिशु स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रभावी हैं।
1.पुरुषों के साथ सुरक्षा के मुद्दे नहीं रहते, जिस वजह से महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को आने-जाने में सरलता होती है। कई बार रातों में और दूर-दराज के इलाकों में भी पुरुष स्वास्थ्य कर्ता आसानी से जा सकते हैं।
2. पुरुष स्वास्थ्यकर्मी पुरुषों को बेहतर ढंग से मातृ देखभाल की जरूरत के बारे में समझा सकता है।
3. पुरुष स्वास्थ्य कर्ता, महिला स्वास्थ्य कर्मियों के काम को कम करता है। खास कर गर्भ के समय पुरुष बाहरी भाग-दौड़ कर लेते हैं।
कुछ देशों में जहां पुरुष और महिला स्वास्थ्यकर्मी मिल कर काम करते हैं, वहां मातृ एवं नवजात शिशु स्वास्थ्य परिणाम बेहतर हैं।
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड