उत्तर प्रदेश में पिछले एक साल से अखिलेश यादव की लैपटाप वितरण योजना का नाम सबकी ज़ुबां पर रही है। 14 दिसंबर को कासगंज जिले में पंद्रह लाख में से आखिरी लैपटाप बांट दिए गए। पर सरकार की चकाचैंध वाली इस योजना के लाभ खोकले ही निकले। लैपटाप खोलते ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की फोटो और ‘पूरे हुए वादे’ देखने को मिलता है। पर लैपटाप से उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में छात्र छात्राओं के वादे अधूरे के अधूरे हैं।
जिला फैजाबाद। पूराबाजार के गांव जियनपुर और चकरसेनपुर में किसी लाभार्थी को प्रशिक्षण नहीं मिला है। ग्रामसभा मक्खापुर की पार्वती ने छह महीने का कम्प्यूटर कोर्स किय्ाा है। कोर्स करने में लगभग नौ हज़ार रुपया फीस देनी पड़ी। उनका भाई चन्द्रभान और वह मिलकर लैपटाप चलाते हैं। लैपटाप पर टैली सौफ्टवेयर अच्छे से हिसाब करने के लिए भी उन्हें आता है।
ब्लाक तारुन, ग्राम विजैनपुर सजहरा की चांदनी के गांव में बिजली ही नहीं है।
जिला अम्बेडकरनगर। ब्लाक कटेहरी, सरैया गांव की ललिता केे भाई अरूण कुमार चलाते हंै। गोपालपुर की रीता को जब से लैपटाप मिला है तब से नहीं चलाया है। आसपास के लोगों के साथ वे इस पर फिल्म ही देखती हैं।
जिला चित्रकूट। ब्लाक मानिकपुर के गांव किहुनिया के विनीता ने कहा कि लैपटाप न मिलता, इसके बदले में सरकार नौकरी दे देती तो बहुत अच्छी बात होती। गांव हनुवा पतेरिया की उमादेवी लैपटाप चलाना नहीं जानतीं और अंग्रेज़ी भी नहीं आती। लैपटाप चार्ज कराने छह किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। रामपुर और कर्वी ब्लाकों में भी यही हालत है।
जिला वाराणसी। ‘जब से लैपटाप मिला है मैं अपनी दुकान पर रखकर इसी से दूसरों के मोबाइल में गाने और फिल्में भरता हूं जिससे मेरी कमाई होती है,’ कहते हैं काशी विद्यापीठ के रोहनियां गांव के मनीष। जगदीषपुर के दिलीप के चाचा का कहना है कि सरकार ने लैपटाप देकर बच्चों को बिगाड़ दिया है क्योंकि बच्चों को केवल फिल्म देखना आता है।
जिला बांदा। दूसरी ओर महुआ ब्लाक के बनसखा गांव के अमिता, अनुराधा और खुशबू फिल्म देखने के अलावा इंटरनेट पर जानकारी भी ढूंढती हैं।