केरल के कोल्लाम जिले के पुत्तिंगल मंदिर में रविवार सुबह 3 बजे के करीब भीषण आग गई। खबरों की माने तो, इस भीषण आग के चलते हुए हादसे में 110 लोगों की मौत हो गई जबकि 400 लोग घायल हो गए। माना जा रहा है कि भारत में किसी धर्मस्थल पर होने वाला यह सर्वाधिक भयानक अग्निकांड है।
विस्फोट की आवाज मंदिर परिसर से एक किलोमीटर से अधिक के दायरे तक सुनी गई तथा ‘आघात तरंगें’ 2 किलोमीटर तक महसूस की गईं। बताया जाता है कि अधिकारियों द्वारा अनुमति देने से मना करने के बावजूद मंदिर के प्रबंधकों ने यह आतिशबाजी करवाई।
सरसरी तौर पर, घटना के कारण हैं, मंदिर प्रबंधन द्वारा कोई सुरक्षा प्रबंध न करना, पुलिस की लापरवाही, विस्फोट के बाद मची भगदड़ और सबसे बड़ा कारण था परिसर में आतिशबाजी स्थल के बिल्कुल निकट बिना किसी सुरक्षा के पटाखों का विशाल भंडार, जिसमें डायनामाइट की छड़ें भी थीं।
हालांकि यह पहली घटना नहीं है जिसकी वजह से धर्म कटघरे में आया है. पहले भी ऐसी ही कई घटनाएं हुई है।
1952 में सबरीमाला मंदिर में आतिशबाजी से 68 लोग भस्म हो गए थे।’ 1990में केरल के मालान्दा मंदिर अग्निकांड में 25 लोग झुलस कर मर गए।
8 नवम्बर 2011 को हरिद्वार में गायत्री परिवार द्वारा आयोजित यज्ञोत्सव में आहुति के दौरान यज्ञशाला में धुआं निकासी का समुचित प्रबंध न होने से मची भगदड़ में 20 से अधिक लोग मारे गए।
14 मार्च 2016 को शिवपुरी करैरा के किलेश्वर महादेव पर आयोजित यज्ञ के दौरान आग लगने से 2 दर्जन लोग झुलस गए।
घटनाओं के बाद हेमशा की तरह केंद्र और राज्य सरकारों ने अग्निकांड में मरने वालों के परिजनों तथा घायलों के लिए क्षतिपूर्ति की घोषणा करके इस मामले की न्यायिक जांच के आदेश भी दे दिए हैं परंतु इसकी जांचों के परिणामों तथा जांच दल की सिफारिशों पर कोई अमल होगा, इसमें संदेह ही है।