सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एक महिला को 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दे दी। कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) एक्ट की धारा-5 के तहत महिला को यह इजाजत दी। यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय की ओर से गठित सात केईएम मेडिकल कॉलेज की 7 सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट के बाद लिया गया। समिति ने रिपोर्ट में कहा कि इस गर्भपात से महिला की जान को कोई खतरा नहीं है।
22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में 26 साल की एक महिला की याचिका की सुनवाई शुरू हुई। 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की इजाज़त भारतीय कानून में नहीं दी जाती है, लेकिन इस मामले में गठित कमेटी ने कहा कि भ्रूण असामान्य है। भ्रूण में न तो खोपड़ी और न ही लीवर है। इसके साथ ही भ्रूण की आंत भी शरीर के बाहर से बढ़ रही है। कमेटी ने बताया कि यह भ्रूण जन्म पर बच नहीं पाएगा। लेकिन अगर महिला बच्चे को जन्म देती है तो उसकी जान को खतरा है।
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट और दलीलों को ध्यान में रखते हुए कहा कि हम एमटीपी एक्ट की धारा-5 के तहत गर्भपात की इजाजत देते हैं। धारा-5 में कुछ ऐसी ख़ास परिस्थितियां हैं, जिनमें 20 हफ्ते के बाद भी गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है। मां की जान को खतरा ऐसी ही एक स्थिति है।
गौरतलब है कि 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की मांग करने वाली महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद ही वह मामले में आदेश देगा। खुद के साथ बलात्कार की शिकायत करने वाली महिला का कहना है कि उसका भ्रूण सामान्य नहीं है और अनुवांशिक बीमारी से पीड़ित है। आंतों की समस्या के साथ ही भ्रूण का मस्तिष्क भी विकसित नहीं हो रहा है। ऐसे में बच्चे के पैदा होते ही मर जाने की आशंका है।