जि़ला वाराणसी। पिछले साल स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय ने ‘माॅडल स्वास्थ्य जि़ला’ कार्यक्रम शुरू किया। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान के सभी पहलू लागू करने के लिए 12 राज्यों से जि़ले चुने गए। उत्तर प्रदेश में दो जि़ले चुने गए – नरेंद्र मोदी का वाराणसी और डिंपल यादव का कन्नौज।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य है कि चुने गए जि़लों को आदर्श बना दिया जाए ताकि दूसरे जि़ले इनका अनुकरण कर सकें। इसके लिए अनुकरण करने वाले जि़लों को भी चुना गया। जैसे सोनभद्र जो वाराणसी के कदमों पर चलेगा।
इस साल मार्च में राज्य सरकार वाराणसी और कन्नौज में कार्यक्रम की जांच करेगी। राज्य सरकार को क्या दिखाई देगा? आइए एक झलक देखेंः वाराणसी में आपको स्वास्थ्य केंद्र मिलेंगे जो खुद इतने बीमार हैं कि किसी और का इलाज करने की स्थिति में नहीं हैं।
वाराणसी की जनसंख्या लगभग 36 लाख है। लगभग आधी जनसंख्या गांवों में रहती है। शहर में मौजूद अस्पताल की सेवाओं से कटे ये गांव प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर ही निर्भर करते हैं।
ज़रा देखिएः पिछले साल ही वाराणसी में ट्राॅमा सेंटर शुरू किया गया। इसके अलावा 23 स्वास्थ्य केंद्र भी खोले गए। जहां शहरी निवासियों के पास स्वास्थ्य सम्बन्धी कई विकल्प मौजूद हंै, वहीं ग्रामीणों को ‘माॅडल स्वास्थ्य जि़ला’ योजना में भी शामिल नहीं किया है।
खबर लहरिया की जांच के अनुसार 55 समूह और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में से 25 शोचनीय स्थिति में हैं। जब हमने चिकित्सा अधिकारी आर.आर. राय से बात की तो उन्होंने कुछ स्वास्थ्य केन्द्रों की जांच का आदेश दिया। बाकी के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘मैं झाड़ू लेकर सब केन्द्रों में तो जाऊंगा नहीं। मैंने सात दिन पहले ही चार्ज लिया है। जैसे-जैसे मामले आएंगे मैं उन पर कार्यवाही करूंगा।’’
काशी विद्ययापीठ ब्लॉक
इस स्वास्थ्य केंद्र में रोज़ लगभग 100 मरीज़ आते हैं। प्रसव और बंध्याकरण की सेवाओं के साथ-साथ और भी कई स्वास्थ्य सेवाएं यहां उपलब्ध हैं। अगर आपको ये सही लगता है तो ज़रा इसकी इमारत पर एक नज़र डालिए। केंद्र की दीवारों में दरारें पड़ रही हैं। यहां के कर्मचारी और मरीज़ दोनों ही डरते हैं कि छत कब गिर पड़ेगी। अगर आप डॉक्टर का कमरा या डिस्पेंसरी देखो, सब खंडहर हो रहे हैं। केंद्र में कोई कूड़ेदान नहीं है। पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। यहां लगे इकलौते हैंडपम्प से गन्दा पानी आता है।
हरुआ ब्लॉक
हम यहां आयुर्वेदिक और यूनानी अस्पताल को देख रहे हैं। यहां केंद्र में 15 बिस्तर हैं, मगर देखिए उनपर कौन है! मरीज़ नहीं बल्कि जानवर। यहां डॉक्टर के लिए एक केबिन है। एक डॉक्टर भी है जो रोज़ कुछ घंटे के लिए यहां आता है। मगर ये अस्पताल असल में है क्या – चारों, पियक्कड़ों और जानवरों का अड्डा। लुटेरे अस्पताल के खिड़की दरवाज़े उखाड़ कर ले गए हैं। गांव के निवासी संजय ने कहा, ‘‘काश ये केंद्र काम कर रहा होता। अपने परिवार को इलाज के लिए निजी क्लीनिकों में लेजाना पड़ता है जो मंहगा पड़ता है।’’
बेनियाबाग, वाराणसी शहर
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के दरवाज़े महीनों से नहीं खुले हैं। अंदर बेड अच्छी तरह लगे हैं, चादरें सफाई से बिछी हैं। मगर देखिए उन पर कौन आराम कर रहा है! छिपकलियां, मरीज़ नहीं। आसपास के कुत्ते, मरीज़ नहीं। केंद्र में बिजली नहीं है। यहां की रेजि़डेंट डॉक्टर रीता बालानी हाल ही में रिटायर हुई हैं। उनकी जगह किसी को नहीं भेजा गया। ‘‘हमने डॉक्टरों के लिए लिखा है मगर कोई हमारी नहीं सुनता।’’, यहां की नर्स मीरा यादव ने कहा।
बेनिया हेल्थ पोस्ट, वाराणसी शहर
बेनिया स्वास्थ्य चैकी में भी हालात समान ही हैं। यहां की इंचार्ज इंदिरा चैबे कहती हैं, ‘‘पानी की कोई सुविधा नहीं है। मरीज़ों को देखने के लिए कमरा नहीं है, लेटने की जगह भी नहीं है। चाहे टीकाकरण हो या पेशाब के नमूनों का परीक्षण करना हो हमारे पास एक ही कमरा है। लोग हमसे पेशाब के लिए शीशियां लेते हैं और पास के किसी घर में जाकर भर लाते हैं।’’