उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और शामली में 2013 में हुए संप्रादायिक दंगों में बहुत से लोग अपने घरों को छोड़कर आस-पास के गांवों में भाग गए। पर आज भी 2016 तक उस दंगे की आग शांत नहीं हो पाई है। इस आग को तेल देने का काम किया है, देश की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने! आयोग ने हाल ही में एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसके अनुसार 2013 के दंगों में भागकर आए मुसलिम समुदाय के लोगों ने कैराना में कानून व्यवस्था खराब कर दी है।
आयोग ने कैराना में विस्थापित मुसलिम समुदाय की संख्या 25 से 30 हजार तक होने का दावा किया है, जिसके बाद कैराना में इस समुदाय की संख्या बढ़ गई है जो कैराना की कानून व्यवस्था खराब करने की जिम्मेदार बताई जा रही है।
इस रिपोर्ट को बकवास बताते हुए समाज सेवियों के एक समूह ने 29 सितंबर को एक प्रेस वार्ता के दौरान, तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट को नकार दिया और इस रिपोर्ट के लिए कैराना के मुसलिम समुदाय से माफी मांगने के साथ इसे वापस लेने की मांग की है।
उन्होंने दावा किया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कैराना में विस्थापित लोगों की संख्या 25 से 30 हजार बताई हैं, जोकि पूरी तरह से गलत है। समाज-सेवियों के सर्वेक्षण के अनुसार, विस्थापितों की संख्या 2 हजार से ज्यादा नहीं है।
पुलिस रिकार्ड में भी कानून व्यवस्था बिगड़ने जैसी कोई बात सामने नहीं आई है। इस प्रेस वार्ता में कैरान से आए शौकत अली ने बताया, हम बहुत बुरे हालत में अपने गांव से कैराना आए थे। हम जानते हैं सच्चाई क्या है, इस रिपोर्ट के द्वारा बस कैराना को बदनाम करने की कोशिश हो रही है।
इस प्रेस वार्ता को हर्ष मंदर, अमन बिरादरी, अकरम चौधरी, माधवी कुकरेजा, ममता वर्मा और फ़राह नक़वी के द्वारा आयोजित कराया गया था।
इस प्रेस वार्ता को हर्ष मंदर, अमन बिरादरी, अकरम चौधरी, माधवी कुकरेजा, ममता वर्मा और फ़राह नक़वी के द्वारा आयोजित कराया गया था और उनकी मांग थी कि रिपोर्ट वापस ले और साथ ही साथ इस समुदाय को कैराना में सुरक्षा दे।
कैराना पर तैयार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट शंक के घेरे में!
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