26 जनवरी 1950 के दिन संविधान लागू भा रहै। संविधान मा कानूनन का ढ़ेर है। संविधान मा शामिल कानून तौ सबके खातिर बने हैं। कानून के जिम्मेदारी अउर कानून रक्षा करैं वाली पुलिस के नजर मा अब कानून कुछ भी निहाय। उंई तौ इं कानून का आपन ढंग से इस्तेमाल करत हैं।
कानून अउर पुलिस शायद उनहिन तक सीमित हैं जेहिके हाथ मा या तौ रूपिया के सत्ता है या फेर जाति के सत्ता है। कानून का गलत इस्तेमाल होय से आज मड़ई नियाव पावैं खातिर दर-दर भटकत है। दुर्घटना का अंजाम दें वाले मड़ई के भीतर कानून का कउनौ डर निहाय। यहै मारे आय दिन चोरी, लूटपाट, हत्या जइसे के घटना होब आम बात बन के रहि गा है। अगर घटना का अंजाम दें वालेन के भीतर कानून अउर कानून के रक्षा करैं वाली पुलिस का डर यतना ही होत तौ बांदा मा जल संस्थान के रिटायर्ड करमचारी नवल किशोर के साथै लूटपाट के बाद गोली मारब अउर पिंकी का सरे आम गोली मारैं जइसे का दुसाहस न जुटा पावत।
केहिके खातिर बने कानून
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