पन्ना जिले पवई ब्लाक के कई गांव पवई मध्यम सिंचाई परियोजना के कारण उजड़ रहे हैं। लोगों के घर और जमीन इस परियोजना के लिए ली जा रहीं हैं, पर विस्थापित लोगों को न तो मूआवजा दिया जा रहा है और न ही उनका पुनर्वास ही किया जा रहा है। खबर लहरिया से सिमरा बहादुर करेही गांव से स्थिति को जानने की कोशिश की। तेंदुरा घाट में केन नदी में बन रहे बाँध को नहरों से जोड़ा जा रहा है, जिससे कई घर उजड़ रहे हैं। लोगों का आरोप है कि उनके घर गिराए जा हरे हैं। खेतों की जमीन ली जा रही है। लेकिन मूआवजा नहीं दिया जा रहा। सेमरा बहादुर बस्ती में जहां ज्यादातर आदिवासी लोग रहते हैं। उन परिवारों को एक भी मुआवजा नहीं मिल रहा है। जिन लोगों को मिला भी है वो न के बराबर है। उन लोगों का कहना है कि अगर मुआवजा नहीं मिलेगा तो हम अपने घर खाली नहीं करेंगे। चाहे हमें अपनी जन ही क्यों न गवानी पड़े। परियोजना से बाँध बन रहा है। वो गरीब किसान दर-दर भटक रहे हैं।
मिलन का कहना है कि हमने घर बनाया है और नहर भी यही से जा रही है। इसमें ये घर भी जा रहे हैं। हटाने के लिए बोले है तो हमें मुआवजा मिलना चाहिये। मुआवजा न देने की वजह से भगा रहे हैं। सीताबाई ने बताया कि नहर बनवाने वाले हमारा घर गिरा रहे हैं। अगर मुआवजा नहीं देंगे, तो हम यहां से कहीं नहीं जायेंगे। मीराबाई का कहना है कि मुआवजा नहीं मिला है मकान तो नहीं जा रहा है, लेकिन आंगन से तीस फुट जमीन जा रही है। हमारे पांच बाल बच्चें हैं, हम उनको कहाँ लेकर जायेंगे। हमने मुआवजा नहीं माँगा है लेकिन लिखकर ले गये थे फिर वापस लौटा दिया है। भूरासिंह का कहना है कि मारने कि धमकी देते है। हमें जब तक मुआवजा या रहने के लिए कोई जमीन नहीं देंगें। हम यहां से कहीं नहीं जायेंगे, चाहे वो हमको मिटटी में ही क्यों न दफना दें। मगर मकानों से हट नहीं सकते हैं। पेड़ काट दिए हैं और घर भी गिरा रहे हैं। हमारी सुनवाई नहीं हो रही है। दामोदर ने बताया कि सात,आठ किसानों की जमीन गई है। हमें हटाने के लिए खुले आम गुंडागर्दी दिखाते हैं। संचित भूमि को असंचित बना रहे हैं। जमीन के कागज भी हमारे पास हैं। आधे एकड़ का चार लाख मुआवजा मिला है लेकिन अगर उस तरह से बेचते तो कम से कम आठ या नौ लाख की बिकती। सियाराम का कहना है कि पन्ना सुनवाई के लिए गये थे। एसडीएम, तहसीलदार साहब के पास गये। ऐसे कोई अधिकारी नहीं बचे जिनके पास न गये हों। लेकिन कोई सुनता ही नहीं है। सरपंच ने पंचनामा बनवाकर बस्ती वालों से हस्ताक्षर करवा के ऊपर अधिकारी को भेजा है। मुआवजा की मांग के लिए।
पर्यावरण रिसर्चर सिध्दार्थ ने बताया कि हम गांव गये थे। गांव वालों ने नई बस्ती में भेजा। तो देखा कि नहर नई बस्ती के बीचोंबीच से जा रही है। सर्वे के समय नहर दूसरी जगह से जा रही थी। लेकिन नहर का डिजाइन बदलकर गांव के बीच से बना रहे हैं। गांव वालों को उचित तो क्या एक भी मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। कम से कम पचास पेड़ आंवला के लगाये हुए हैं। उन्हें एक भी पेड़ का मुआवजा नहीं दिया जा रहा है।
प्रशासन वाले कोई भी अधिकारी सिंचाई विभाग से लेकर लेखपाल तक इस मामले में कोई भी जवाबदेही देने से साफ मनाकर दिए हैं। शायद इसलिए कि अगर हम बोले तो हमारा भांडा फूट जायेगा।
रिपोर्टर: गीता और चंदा