इस हफ्ते राज्य सभा में विपक्ष दलों ने केंद्र सरकार, खासकर कृषि मंत्री और जल संसाधन मंत्री, का जमकर विरोध किया है। भारत की 33 करोड़ वाली आबादी सूखाग्रस्त इलाकों में रहती है। इन इलाकों में हालत बद-से-बद्दतर हो चुकी है ओर इस सूखे की हालत के बारे में ना कृषि मंत्री को और न ही जल संसाधन मंत्री के पास कोई ठोस जानकारी है। केंद्र सरकार ने यह जिम्मेदारी राज्य सरकार को सौंप कर हाथ झाड़ लिए हैं।
राज्य सभा में की गयी बहस के अनुसार, देश के ग्यारह राज्य सूखे से पीड़ित हैं। इन ग्यारह राज्यों में सबसे बुरी हालत उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की है। पिछले पच्चीस सालों में तीन सौ बारह सिंचाई के परियोजना शुरू की गईं। जिनमें से दो सौ चालीस परियोजनाएं यूपी और महाराष्ट्र के लिए हैं। राज्य सभा के सांसदों ने केंद्र सरकार से यह भी कहा है कि सुखा-राहत पैकेज इन राज्यों के लिए पर्याप्त नहीं है।
उदहारण के तौर पर बुंदेलखंड के चित्रकूट को ही ले लीजिए। जिले के कई किसान ऐसे हैं जिन्हें पिछले वर्ष के ओला वृष्टि के चैक भी अभी तक नहीं मिले है!
इसके बाद सूखा राहत के चैक मिलने की बात तो बहुत दूर है! अधिकतर किसानों को खुद यह नहीं पता कि उन्हें कब और कितने का चैक मिलना है। राज्य सरकार ने 867 करोड़ के पैकेज की घोषणा जरूर की है लेकिन किस आधार पर यह राहत दी जाएगी यह स्पष्ट नहीं है।
बढ़ती पानी की समस्या को देखते हुए यूपी सरकार ने नए हैंडपंपों और टैंकरों की व्यवस्था की है। लेकिन इनका सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। कई ऐसे जिले हैं जहां दलित बस्तियां हैं और वहां तक पानी दबंगाई के कारण नहीं पहुंच पाता! यही नहीं, यहां ऐसे टैंकर चलाएं जा रहे हैं जो एक गाँव के दो से ज्यादा चक्कर नहीं काटते!
यही हाल, अखिलेश सरकार द्वारा शुरू की गयी खाद्य पैकेट योजना का है। कुछ इलाकों में जो अन्त्योदय परिवार सूची में हैं, उनको पैकेट नहीं मिल पा रहा है। यही नहीं, ऐसे भी कई क्षेत्र देखने को मिल रहें हैं जहाँ कोटेदार इन राहत पैकेट को खुले मार्किट में ऊँचे दामों में बेच रहे हैं।
सूखे की मार से चित्रकूट जिले का फसल उत्पादन आधा हो गया है। लोगों ने छह महीनो से दाल नहीं खायी है तो कुछ ने हफ्ते भर से नहाया भी नहीं है। साथ ही, पशु मेले में इस बार पशुओं को औने-पौने दामों में बेचा गया।
इन बढ़ती समस्याओं के बीच एक किसान किस से जवाब मांगेगा? हर बार, लगातार किसानों के लिए योजनायें बनायीं जा रही हैं लेकिन उन योजनाओं के सफल होने और न होने की जिम्मेदारी किसकी है? राज्य सरकार, केंद्र सरकार की तरफ उंगली घुमा देता है तो कभी राज्य सरकार केंद्र सरकार को दोष दे देती हैं। मौजूदा हालातों में लगता है कि किसान को सूखा राहत से पहले इस निखट्टू सरकार से राहत मिलनी चाहिये।