हम में से हर कोई कूड़ा पैदा कर रहा है और बंग्लोर के लोग बहुत कम जानते हैं कि पैदा हुए प्लास्टिक, खाने और दूसरे कचरे के पहाड़ों का करना क्या है। कुछ समय तक बंग्लोर इसे मंदूर (बंग्लोर के पास शहर) भेज रहा था। फिर वहां के निवासी बीमार पड़ गए, हवा में बदबू फैल गई। परिवारों ने अपनी बेटियां मंदूर में बिहानी बंद कर दीं। मंदूर ने विद्रोह कर दिया और बंग्लोर से कहा कि अपना कूड़ा कहीं और फेंको।
बंग्लोर में कूड़ा उठाने वालों ने – जिन्होंने कम वेतन में ज़्यादा काम करना होता है – बंग्लोर निवासियों से कहा कि कम से कम अपना जैविक और अजैविक कूड़ा तो अलग कर लो। कुछ जगहों पर लोगों ने ये पांच मिनट की मेहनत करने से भी मना कर दिया और तभी माने जब सफाई कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। कुछ निवासी समूह इस काम में उत्साह से लग गए। उन्होंने अपने आप को संगठित किया और बातचीत की कि किस तरह कम कूड़ा पैदा किया जाए। कैसे रीसाइक्लिंग और कम्पोस्टिंग बहुत आसान है। मैंने भी अपने कूड़े को अलग करना शुरू कर दिया और अपने घर के एक कोने में कम्पोस्ट पॉट बनाया। इसी बीच मैंने एक कहानी सुनी। शहर के दूसरे कोने पर एक औरत ने अपनी कॉलोनी के सैकड़ों नागरिकों को इतनी अच्छी तरह से संगठित करके माहिर कूड़ा प्रबंधक बना दिया था कि किसान उससे खाद खरीदने आ रहे थे। ये सुनकर अजीब लगा मगर बहुत अच्छा भी लग रहा था।
मैंने अपने एक पत्रकार दोस्त से कहा, ‘‘मैं अलग अलग औरतों के बारे में लिखना चाहती हूं जो अपशिष्ट प्रबंधन (वेस्ट मैनेजमेंट) की प्रक्रिया का हिस्सा है साथ ही सफाई कर्मचारियों और खाद निर्माताओं से भी बात करनी है’’। उसने कहा, ‘‘मगर क्या तुमने ये ध्यान दिया है कि ये हमेशा औरतें ही होती है। औरतें ही हैं जो हमेशा शहरों में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए फिक्र करती हैं और इसके लिए कोशिश करती हैं।’’
उसने आगे बताया, ‘‘मैंने कचरे की समस्या पर चर्चा के लिए व्हाट्सएप्प समूह बनाया था और उसमें सिर्फ एक ही आदमी था। उसने भी जल्दी ही ग्रुप छोड़ दिया’’। ‘‘वास्तविकता कुछ ज़्यादा ही हो गई थी?’’ मैंने पूछा। ‘‘शायद’’, उसने जवाब दिया।