ए समय त पूरा बनारस कूड़ा से ढकल हव। अइसन लगत हव बनारस में कूड़ा नाहीं कूड़ा में बनारस हव। अगर यही हाल रही त एक दिन इ शहर कूड़ा घर बन जाई। 2010 में नगर निगम के तरफ से कूड़ा उठावे खातिर के नियम निकलल रहल कि हर गावं में कूड़ादान रख्ख्ल रहला। हर घर से रोज टाली वाला जाके कूड़ा ली आई आउर ले जाके कूड़ा दान में डाल देई लेकिन इ नियम ज्यादा दिन तक नाहीं चल पायल। जबकि उ लोग हर घर से तीस रूप्या महीना लेत रहलन।
इ खाली बनारस के शीर के बात नाहीं हव बनारस के हर गली सड़क पर कूड़ा मिल जाला।गावं शहर में त सफाईकर्मी खाली नाम के रख्खन हयन। अगर सप्ताह महीना में उ झाड़ू लगावे जात भी हयन त उ झाड़ू लगा के कूल कूड़ा वहीं छोड़ देत हयन। सफाई के त जइसे कउनो नाम नाहीं हव।
सरइया, मवईया, लालपुर, नई सड़क, वरूणा पुल इ सब जगह त जइसे कूड़ा के ढेर लगल हव। कही पर सालो से त कहीं पर पांच साल से एकदम घना आबादी हव।इहाँ के रहे वाले लोग बबलू, असीम, गुलजार, नसीमा बानो के कहब हव कि हमनी के त दम घुटत हव। प्रषासन त तनिको धियान नाहीं देत कि योजना त बस नाम के हव लेकिन नगर निगम तनिको धियान नाहीं देत हव कि शीर में लोग कूड़ा के वजह से बीमार पड़त हयन।
कूड़ा ही कूड़ा
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