सबै कोऊ खेतिहर किसान के ही बात करत है, बटाईदार के काहे नहीं? अब भला बटाईदार किसान का करै। जब खेतिहर किसान के बारे मा ही बात कीन जात है अउर उनका ही मुआवजा मिलत है। जइसे तइसे खेतिहर किसान का मुआवजा दइके सरकार मुआवजा दइके खाना पूर्ति करत ही है, पै बटाईदार किसान का वा भी नसीब निहाय।
जबैकि अगर सच्चाई मा देखा जाय तौ मौसम के मार से सबसे ज्यादा आहत हैं, बटाईदार किसान। काहे से बलकट अधिया, तिहइया अउर ठेकेदारी मा बटाईदार किसान खेती लइके आपन मेहनत अउर रूपिया दांव मा लगा के जुंआ का खेल खेलैं का काम करत है। खेतिहर किसान का तौ वहिका हिस्सा मिल ही जात है। ऊपर से अगर सरकार मुआवजा भी खेतिहर किसान के नाम ही देत है तौ बटाईदार किसान आपन का बेबस ही महसूस करत हैं। सरकार का इं किसानन के बारे मा कुछ रणनीति तैयार करैं के जरूरत है।
बटाईदार किसान उंई ही मड़ई हैं जउन बेगैर खेती के मतलब खेत का मजदूर। ज्यादातर गरीब अउर समाज मा मानी जाय वाली छोट जाति के लोग ही होत हैं। जउन जमींदार खेतिहर किसान के खेती लइके मेहनत करत हंै। पूरा साल मेहनत के बाद पहिले से तय शर्त के हिसाब से अनाज का भण्डार उनके घर मा ही करत हैं। जउन एक बंधुवा मजदूर के जइसे हंै। भला कउनौ संस्था कार्यकर्ता अउर सरकार के दम है जउन या व्यवस्था का खतम कई दें?
किसान का मुआवजा के आस, बटाईदार निराश
पिछला लेख