जिला बाराबंकी, तहसील हैदरगढ़, गांव भुलभुलिया पुरवा। यहां के किसान आशाराम का शव मई को डी.एम. दफ्तर के सामने मिला था। माना जा रहा है कि उसने आत्महत्या की है। उसकी पत्नी को मुआवजे का सात लाख रुपए का चेक भी दो दिन के भीतर मिल गया। मगर जैसे जैसे इस मामले की जांच हो रही है कई तरह के तथ्य सामने आ रहे हैं। आशाराम ने तीन बैंकों से एक ही जमीन के कागज रखकर कर्ज लिया था। साहुकार से लिया कर्ज और बैंक से लिया कर्ज मिलकर करीब पंद्रह से बीस लाख रुपए तक होने का अनुमान है। हालांकि यह कर्ज की रकम कितनी है इसका ठीक आकलन अभी पुलिस भी नहीं लगा पाई है।
भुलभुलिया पुरवा के एक कार्यकर्र्ता ने नाम न बताने कि शर्त पर बताया कि मोहनपुर का अमरेश तिवारी लोगों को बैंक से कर्ज दिलाने का काम करता है। उसी ने आशाराम को कर्ज दिलाया था। उनके अपने वकील होते हैं। इनकी बैंक के साथ साठगांठ होती है।
आशाराम ने छह बीघा ज़मीन पर कर्ज लिया था मगर उसने दो बीघा ज़मीन का बैनामा भी कर दिया है। यानी दो बीघा ज़मीन किसी और को बेच दी है।
दो बैंकों से खबर लहरिया के पत्रकार ने बात की तो पता चला कि इन दोनों को ही नहीं पता था कि उसने दूसरे बैंक से भी कर्ज लिया है।
ग्रामीण बैंक आफ आर्यावर्त
यहां के प्रबंधक बी.के. तिवारी ने बताया कि आशाराम हमारा पुराना ग्राहक है। हमें कभी यह पता नहीं लगा के वो धोखाधड़ी कर सकता है। हमने कर्ज देते समय उससे शपथ पत्र लिए थे। कर्ज देने से पहले बैंक के कर्मचारी भी जांच के लिए गए थे। उसने सारे कागज जमा किए थे। उसने यह धोखा किया। एक लोन उसने 2012 में लिया था और दूसरा 2014 में। दोनों मिलाकर इस समय दो लाख रुपए के करीब कर्ज है। परिवार को यह लोन तो भरना ही पड़ेगा। अगर नहीं भरा तो हमें मजबूरन जमीन जब्त करनी पड़ेगी।
बैंक आॅफ इंडिया मकर पुर
यहां के प्रबंधक नरेन्द्र कुमार ने बताया कि उसने नो ड्यज भरकर दिया था। यानी बैंक कर्ज लेने वाले से कुछ कागजों पर वहां के अन्य बैंकों से हस्ताक्षर करवाता है। इसमें बैंक भरोसा दिलाता है कि उसने किसी और बैंक से उस संपत्ति पर कर्ज नहीं लिया है। तहसील में कागज की जांच भी होती है। यह तहसील के स्तर की गड़बड़ी है। आशाराम ने 2012 में डेढ़ लाख रुपए कर्ज लिया था फिर 2014 में इस कर्ज को चुकाने के लिए उसने ज़्यादा कर्ज लिया। मौजूदा समय में अब तीन लाख पच्चीस हज़ार रुपए का कर्ज आशाराम पर है।