केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सेरोगेसी (किराये की कोख) विधेयक, 2016 को अपनी मंजूरी दे दी है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रस्ताव के अनुसार इस विधेयक का उद्देश्य सेरोगेट माताओं के अधिकारों की रक्षा कर, इस प्रकिया को कानून के दायरे में लाने और कमर्शियल सेरोगेसी (व्यापारिक तरीके पर) पर रोक लगाना है। केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद इस विधेयक को संसद में लाया जाएगा।
ड्राफ्ट विधेयक में एक बोर्ड के गठन का प्रस्ताव है जो क्लीनिक को नियंत्रित और जांच करेगी। इसके साथ ही ड्राफ्ट विधेयक में कमर्शियल सेरोगेसी पर रोक लगाने का प्रावधान शामिल किया गया है। सिर्फ उन्हीं मामलों में सेरोगेसी को मंजूरी दी जाएगी जिसमें दंपति को बच्चे पैदा नहीं हो सकते हैं।
लॉ कमीशन के मुताबिक सेरोगेसी को लेकर विदेशी दंपत्तियों के लिए भारत एक पसंदीदा देश बन चुका है।
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को भेजे गए दो स्वतंत्र अध्ययनों के मुताबिक हर साल भारत में 2000 विदेशी बच्चों का जन्म होता है, जिनकी सेरोगेट मां भारतीय होती हैं। देश भर में करीब 3,000 क्लीनिक विदेशी सेरोगेसी सेवा मुहैया करा रहे हैं।
ऐसे लोगों को नहीं मिलेगी अनुमति…
विदेशी नागरिक और प्रवासी नागरिकों को यह अधिकार नहीं मिलेगा।’एकल माता-पिता, समलैंगिक जोड़े और साथ रहने वाले जोड़े को सेरोगेसी की अनुमति नहीं मिलेगी।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि बीते कुछ समय में सेरोगेसी से जुड़े अनैतिक मामले भी सामने आए हैं, जिससे सरकार को इस संबंध में कानून बनाने की जरूरत महसूस हुई है। उन्होंने कहा, ‘दूसरे के हित के लिए सेरोगेसी का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों के लिए होगा। सरोगेसी क्लीनिक चलाने वालों को हर तरह के रिकार्ड को 25 वर्षो तक रखना अनिवार्य होगा।