किन्नर हमेशा से समाज में अपमान और हंसी मजाक का ही मुद्दा रहे हैं। अलग-अलग तरह की शारीरिक और मानसिक हिंसा का सामना करने वाले इस समुदाय के ल¨ग विकास की मुख्यधारा से कभी नहीं जुड़ पाए। स्कूल हों या दफ्तर, इस समुदाय के लिए बनी एक धारणा इन्हें वहां जाने से रोकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2014 में इस समुदाय के लिए उम्मीद जगाने वाला फैसला दिया। इन्हें तीसरे जेंडर के रूप में मान्यता मिली। इसके अलावा इनके लिए शिक्षा, रोजगार में आरक्षण की भी व्यवस्था की गई। इस फैसले के एक महीने बाद ही हुए लोकसभा चुनावों में तीसरे जेंडर के समुदाय के लिए अलग से पहचान पत्र भी जारी किया गया।
चुनाव के ठीक एक महीने बाद राजस्थान के अजमेर जिले में झूठे आरोप में हिरासत में लेकर तीन पुलिस वालों ने मुंबई से अजमेर आई एक किन्नर के साथ सामूहिक बलात्कार किया। इतना ही नहीं, जब उसने इसकी रिपोर्ट लिखवानी चाही तो नहीं लिखी गई। बाद में काफी हंगामे के बाद रिपोर्ट लिखी गई। लेकिन करीब साढ़े तीन महीने बीत जाने के बाद भी इस मामले में दोषियों को सजा नहीं मिली।
इस समुदाय के लिए काम करने वाली संस्थाएं लगातार इस मामले को लेकर सक्रिय हैं। लेकिन न तो उनकी और न ही बलात्कार का सामना करने वाली किन्नर की कोई सुनवाई हो रही है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए एक मजबूत व्यवस्था बने। कानूनी फैसलों को लागू करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला पुलिस विभाग इस समुदाय के प्रति अपना नजरिया बदले।
किन्नरों के खिलाफ हिंसा पर सख्ती जरूरी
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