स्कूल चलो अभियान या समय जोर पकड़े है। शहरन कस्बन मा रैली निकाल के बच्चन का पढैं के अलख जगाई जात है, पै का या अलख बच्चन का सच मा स्कूल पहुंचा पाई?
हर साल इनतान के जागरूकता अभियान शिक्षा विभाग करत है, पै फेर भी बच्चा स्कूल से दूर हैं। या अभियान शिक्षा विभाग का खास कार्यक्रम है या देखावटी है, या फेर यहिके जमीनी हकीकत कुछ अउर है। बांदा से दस किलोमीटर के दूरी मा बसा महुआ ग्राम पंचायत के कुछ बंधिया पुरवा के सैकड़न बच्चा स्कूल नहीं जात हैं। काहे से होंआ स्कूल ही निहाय। खुरहण्ड के कुछबधिया बस्ती मा बना प्राथमिक स्कूल कतौ खुलतै निहाय। या जाति के बच्चा पढ़ाई से बिल्कुल अंजान हैं। अगर इनतान के समस्या कुछ खास जाति या परिवार मा है तौ सर्व शिक्षा अभियान यहिका काहे खत्म नहीं कई पाइस? घर-घर जा के सर्वे करै अउर स्कूल से बाहर बच्चन का स्कूल जाय का कहै अउर चिन्हित करैं का काम नींक से नहीं होत है। रैली निकालैं से ज्यादा जरूरी है जमीनी स्तर मा पता करब कि केतने बच्चा स्कूल नहीं जात है। हर साल या अभियान सिर्फ कागज तक ही सीमित रहत है।
चित्रकूट बांदा के कम संख्या मा पाई जाय वाली जाति बंजारा, भांट, कुछ बंधियां अउर आदिवासी जाति के बहुतै बच्चा अबै भी स्कूल से बाहर हैं। अब सवाल या उठत है कि सरकार अभियान के तहत का या कमी का पूर कई पाई। दूसर बात है कि बच्चन का स्कूल मा जाये से ज्यादा शिक्षा के गुणवत्ता है। जउन बच्चा स्कूल जात भी हैं उनका कुछौ आवत भी निहाय। या जागरूकता के साथ-साथ सरकार अध्यापकन का भी जागरूक करैं।
का सच होई ‘स्कूल चलो अभियान’?
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