बांदा जिले मा का कतौ डाक्टरन के पद भर पइहैं? या समस्या दसन साल से है। जेहिकर असर सीधे आम जनता के ऊपर परत है। काहे से कि अगर गांवन के अस्पताल मा डाक्टरन के कमी है तौ उनकर इलाज नहीं होत आय। मड़इन का इलाज खातिर अतर्रा बांदा या फेर आपन जिला से दूसर शहर जाय का परत है। अगर मड़इन का बाहर ही जा के इलाज करावैं का है तौ गांव मा सढ़ा जइसी बड़ी अस्पताल बनवावैं का फायदा?
सोचैं वाली बात या है कि जिला मा अगर 162 डाक्टर मा से सिर्फ 42 डाक्टर ही हैं तौ 120 डाक्टर के कमी है। इनका काहे नहीं पूरा कीन जात आय। इनतान मा तौ यहै लागत है कि सी.एम.ओ. से लइके मुख्यमंत्री तक का यतनी बड़ी समस्या होय के कउनौ चिन्ता निहाय। अगर गांव मा मड़ई मरत है तौ मरैं दे। बीमारी फइलत है तौ फइलैं दें। शायद यहै सोच के साथै स्वास्थ्य विभाग काम करत है। जिला मा स्टाप के कमी है तौ मौजूद डाक्टर 102 डाक्टरन के काम बिल्कुल नहीं कई सकत आय। या कमी तौ है, पै कोशिश है कि डाक्टरन का दुई-दुई अस्पताल के जिम्मेदारी दइके कमी पूरा करैं के कोशिश कीन जात है। यहिमा भी स्वास्थ्य विभाग के ऊपर ही सवाल है कि डाक्टर जउन दिन न होई व दिन तौ मड़इन का हेंया होंआ भागैं का ही परी। या सही तरीका न होय कि अबै तक मा मड़ई भी परेशान रहै अउर डाक्टर भी। अब या कमी डाक्टर आम जनता, विभाग अउर सरकार के ऊपर असर डालत है तौ या कमी का जल्दी भरैं मा ही भलाई है।
का कतौ पूरी होई डाक्टरन के कमी
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