सरकार सर्व षिक्षा अभियान तौ जोर ष्शोर से चलावत हवै। का सर्व षिक्षा अभियान चलावैं से स्कूल मा बच्चा पढि़हैं। बुंदेलखण्ड मा जउन स्कूलन के हालत जइसे बाउंड्री या फेर स्कूल मा खेल के मैदान के व्यवस्था होइ जई। स्कूलन के हालत बहुतै खराब हवै। स्कूलन के सामने जउन हैण्डपम्प लाग रहत हवैं। वहिसे मड़ई पानी भरत हवैं। यहिसे बच्चन के पढा़ई मा असर परत हवै।
सरकार जमीन स्तर के सच्चाई का नकार नहीं सकत हवै। यहिके खातिर जरुरी हवै कि षिक्षा से जुड़ी हर गतिविधि का पूर करै। तबहिने सर्व षिक्षा अभियान सफल होइ सकत हवै। नहीं तौ सरकार अभियान चलावत रही अउर षिक्षा का स्तर जहां का तहां रही। अगर सरकार का सही तरीका से साक्षर बनावैं का हवै तौ वा षिक्षा से जुड़़ी हर समस्या का सोचै अउर खतम करै। तबहिने भारत के बच्चा साक्षर होइहैं?
सर्व शिक्षा अभियान का चलत यतने दिन होइगे पै ज्यादा स्थिति नहीं सुधरी आय। यहिका सुधारैं का जिम्मेदार को हवै।
सवै शिक्षा अभियान मा हर साल बजट आवत हवै जेहिका सिर्फ खर्च कीन जात हवै। काम के नाम मा खानापूर्ति कीन जात हवै। यहिके तहत काम करैं वाले करमचारी का भी शोषण कीन जात हवै। उनका समय से वेतन नहीं दीन जात आय। वेतन खातिर शिक्षा विभाग के चक्कर लगावत फिरत रहत हवै। एक तौ इं करमचारी संविदा के तहत होत हवैं तौ अउर शोषण होत हवै। काहे से उंई विभाग के खिलाफ आवाज उठइहैं तौ काम से निकाल दीन जइहैं।