बात अगस्त 2012 की है। मैं ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए कॉलेज गयी थी। एक दिन मैं अपनी दोस्त के साथ बालकनी में खड़ी थी कि तभी एक गोरा, नशीली आँखों और गुलाबी गालों वाला लड़का सामने से आता हुआ दिखाई दिया। उसे देखते ही मैं उसमे खो गयी। मैं अपनी दोस्त से उस लड़के के बारे में कहने ही वाली थी कि वो बोल पड़ी कि उसके भैया आ गये हैं और वो जा रही है।
मैं जहाँ कंप्यूटर क्लास के लिए जाती थी, वो लड़का भी वहीँ आने लगा। उसने मुझसे बात नहीं की लेकिन अपनी बहन यानी मेरी दोस्त के मोबाइल से मेरा नम्बर निकाल कर उसने उस पर एक शायरी वाला मैसेज भेजा। कॉल करने पर मालूम चला कि वो उसी लड़के का नंबर है। मैं इस बात से बहुत खुश हो गयी कि उसने मुझे मैसेज किया। वो रोज़ कुछ न कुछ मैसेज करता और रात को 9 बजे कॉल भी करता था।
हमारी मुलाकातें बढ़ती जा रही थीं। एक तरफ दिल कर रहा था की वह मेरा हाथ पकड़े, वहीं जब वो मुझे छूता मैं अपना हाथ छुड़ा लेती थी। मैं नज़रें उठाकर उसकी आँखों में आँखें डालकर देखना चाहती थी लेकिन चाहते हुए भी नहीं कर पा रही थी। हम कॉफ़ी का खाली गिलास पीये जा रहे थे। करीब दो घंटे एक साथ रहने के बाद हम वहां से निकले।
आते समय बहुत मन कर रहा था कि समय यहीं रुक जाये और हम एक दूसरे के हाथों में हाथ डाल कर बस बैठे रहें लेकिन यह मुमकिन नही था।
मैं उसकी आँखों में देख कर अपना दुपट्टा ठीक करती थी, तो वो कहता था कि काश तुम्हारा दुपट्टा कभी ठीक से न बंधे और तुम यूंही मेरी आँखों में झांकती रहो।
हमने एक आइसक्रीम खाते हुए विदेशी जोड़े को देखा। वो दोनों एक ही आइसक्रीम में से खा रहे थे। यह देख कर मेरा भी मन हुआ कि मैं उसको बोलूं कि मुझे भी आइसक्रीम खानी है।तभी उसने कहा चलो आइसक्रीम खाते हैं मैंने उसकी तरफ देखा और सर हिला कर कहा, नहीं तुम खा लो, मुझे नहीं खानी। फिर हम दोनों चल दिए। मैंने धीरे से कहा, मेरा मन था कि हम दोनों एक ही आइसक्रीम से खाएं, वो बोला कि मैं भी यही चाहता था इसलिए तुमसे पूछ रहा था। फिर हम वापस गए। हमने एक आइसक्रीम से खाया और फिर अपने-अपने रास्ते चले गये। मुझे आज भी वो दिन याद कर बहुत ख़ुशी होती है। काश समय रुक सकता!!
यह लेख खबर लहरिया और एजेंट्स ऑफ़ इश्क की कार्यशाला में लिखा गया है।
काश समय रुक पाता!
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