उत्तर प्रदेश में कानपुर राज्य का सबसे बड़ा उद्योगों का केंद्र होने के साथ-साथ एक संपन्न शहर भी है। बेशक यहाँ नागरिकों को अभी सुविधायें प्राप्त हैं लेकिन यहाँ के ग्रामीण इलाकों में अभी भी मूलभूत जरूरतें न के बराबर हैं।
कानपुर की जनसंख्या का लगभग 25 प्रतिशत भाग, भीड़भाड़ और मलिन बस्तियों, अनौपचारिक बस्तियों, रेल पटरियों के आसपास, फुटपाथ और गंगा के आस-पास में रहता है जो इन्हीं जगहों में खुले में शौच करते हैं। पर्याप्त सुविधाओं के अभाव में जनगणना के आंकड़ों के आकड़ों के अनुसार, कानपुर शहर में कम से कम इकतालीस हज़ार सात सौ सतावन परिवार खुले में शौच करते हैं।
लेकिन बात यदि संगीता अवस्थी, कल्पना आनंद और किरण श्रीवास्तव की जैसी महिलाओं की हो तो निश्चित ही शहर का हर मलिन कोना, उनके पड़ोस की तरह ही खुले में शौच करने से मुक्त हो जाएगा। सिर्फ यही तीन महिलाएं ही नहीं बल्कि इनके प्रतिबद्ध समुदाय से जुड़े लोग और नेता भी कड़ी मेहनत कर रहे हैं ताकि साफ़-सफाई और झुग्गियां में स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता बनी रहे।
बाबा घाट की मलिन बस्तियों में रहने वाली 35 वर्षीय संगीता अवस्थी बताती हैं, “इस दर्द और शर्म को कोई नही समझ सकता जो हमें बाहर खुले में शौच करने से महसूस होती है”।
दो दशक पहले राजेंद्र से जब उनकी शादी हुई थी तब उन्हें यह पता नहीं था कि उन्हें हर रोज खुले में शौच के लिए जाना है। वह कहती हैं, “अगर मुझे पता होता कि मेरे ससुराल में शौचालय नहीं है तो मैं कभी शादी नहीं करती”। काफी लम्बे समय तक संगीता ने अपने सम्मान के साथ समझौता किया है। इसका एक कारण यह भी रहा कि उनके पति एक स्कूल में चपरासी है और उनकी तनख्वाह उनके परिवार को चलाने के लिए भी कम पड़ती है।
लेकिन पिछले साल जब गैर लाभकारी संगठन श्रमिक भारती ने गरीबी और महिलाओं के सशक्तिकरण के मुद्दों पर काम करना शुरू किया तब शौचालयों के निर्माण और पेय जल की व्यवस्था करने के लिए कुछ महिलाओं की सहायता ली जिनमें संगीता भी है।
संगीता ने इसी से प्रेरित होकर अपने आस-पास के घरों से स्वच्छता मिशन शुरू किया और सबसे पहले शौचालय का निर्माण किया।
श्रमिक भारती की मदद से संगीता और उनकी दो अन्य महिला साथियों ने सरकारी सब्सिडी और लोगों की सहायता की मदद से स्वच्छता सम्बन्धी चिंताओं से मुक्ति पायी। उन्होंने मिल कर गंदे पानी की निकासी, साफ़ पानी की व्यवस्था, साफ-सफाई और खुले में शौच की गंदी आदत को दूर किया है। हालाँकि इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत भी करनी पड़ी लेकिन अब उनका काम कानपुर शहर को स्वच्छता का शहर बना रहा है।
फोटो और लेख साभार: यूथ की आवाज़