अनीता मिश्रा फ्रीलांस लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं ज्वलंत मुद्दों पर कई बड़े अखबारों में नियमित रूप से लिखती हैं
‘देखना, एक दिन मेरा बेटा गावस्कर बनेगा’। नईम की मां जब भी बेटे को खेलते देखती तो बड़े गर्व से सबसे यही कहती थी। लेकिन बेटे के लिए यह सपना देखने वाली मां ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनके बेटे की जिंदगी की पारी इतनी छोटी होगी! व्यवस्था के जाल में उलझ कर उसे इस कदर बहुत कम उम्र में आउट हो जाना था। वे अपने बेटे के शव को देख कर रोते हुए यही बोल रही थीं कि ‘कोई मेरे गावस्कर को वापस ला दो!’
पिछले दिनों हरियाणा और गुजरात से लेकर देश के कई राज्यों में हालात काफी बेकाबू हुए, व्यापक तोड़-फोड़ लूटपाट और हिंसा हुई, यहां तक की हरियाणा के मुरुथल से कई महिलाओं से बलात्कार तक की खबर्रें आइं। लेकिन वहां हालात से निपटने के लिए सरकार, पुलिस और सेना का रुख क्या रहा, यह सबने देखा। कश्मीर में नईम सहित दो अन्य लोग जो मर गए उनका कसूर इतना ही था कि छिंदवाड़ा जिले में आरोप था कि किसी आर्मी जवान ने एक लड़की की छेड़छाड़ की। इसी शिकायत पर स्थानीय लोग विरोध प्रदर्शन कर थे, जो उग्र हो गया। इससे निपटने के लिए सुरक्षा बलों को सबसे आसान तरीका लगा कि सीधे फायरिंग कर दी जाए। यही हुआ और उभरते क्रिकेटर नईम भट सहित तीन और लोग मारे गए।
बाद में लड़की का एक वीडियो जारी हुआ, जिसमें उसने कहा कि उसके साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ, बस एक लड़का उसका पर्स छीन कर भागा था। इस घटना से जुड़े दावे और हकीकत फिलहाल उलझे हुए हैं। लेकिन एकबारगी यह मान भी लिया जाए कि हिंसक भीड़ पर काबू पाना जरूरी था, तो क्या अकेला उपाय गोली चलाना था? दशकों से एक ही तरह से संवेदनशील स्थिति में कायम कश्मीर जैसे राज्य में सेना या सुरक्षा बलों को भीड़ से निपटने के प्रशिक्षण का क्या यही हासिल है कि पहला उपाय गोली चलाना हो? अगर आखिरी उपाय था भी तो मरने वालों के सिर जैसी जगह पर गोली लगना क्या बताता है? क्या कश्मीर में कानून-व्यवस्था को दुरुस्त रखने वाले तंत्र को यह नहीं मालूम है कि इस तरह की एक घटना राज्य में सालों की उस मेहनत को बर्बाद कर देती है, जिसमें अमन के मकसद से स्थानीय लोगों का विश्वास जीतने की कोशिश की जाती है?
अनीता मिश्रा