नए साल की पूर्व संध्या पर बैंगलुरू में महिलाओं के साथ हुए यौन हमलों से देश भर में आक्रोश उत्पन्न हुआ है, लेकिन यहां सबसे अहम बात यह है कि इनमें से ज्यादातर मामलों का अंत सज़ा के साथ नहीं होता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एन सी आर बी) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में, भारतीय दंड संहिता (आई पी सी) की धारा 354 (शील भंग करने के इरादे से महिला पर हमला) के तहत कर्नाटक में दर्ज किए गए 100 मामलों में से एक से अधिक मामले का अंत सजा के रुप में नहीं हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर दर्ज किए गए 10 मामलों में से 1 का निपटारा सजा के रुप में हुआ है। ये आंकड़े निश्चित रुप से कर्नाटक की तुलना में 10 गुना बेहतर है।
वर्ष 2015 में, धारा 354 के तहत दर्ज किए गए पांच हजार एक सौ बारह मामलों में से केवल 69 (1.3 फीसदी) मामलों का निपटारा सजा के रुप में हुआ है। देश भर में यौन उत्पीड़न के दर्ज हुए मामलों में से सिर्फ 10 फीसदी मामलों का निपटारा सजा के रुप में हुआ है। इन मामलों में गिरफ्तार किए गए लोगों में से सिर्फ 11 फीसदी दोषी करार हुए। आई पी सी की धारा 509 (महिलाओं के शील भंग करना) के तहत भारत में आठ हज़ार छह सौ पचासी मामले दर्ज हुए हैं जिसमें से आठ सौ सत्तर यानी 10 फीसदी से ज्यादा को सजा नहीं हुई है। इन आंकड़ों में वर्ष 2011 में 43 फीसदी दोष सिद्धि की दर से 33 प्रतिशत अंक की गिरावट हुई है।
कर्नाटक में धारा 509 के तहत 154 मामले दर्ज हुए, जिनमें से सात से अधिक को सजा नहीं मिली है। साफ है कि सिर्फ 5 फीसदी को सजा मिली।
साभार: इंडियास्पेंड