भारतीय किसानों को आखिर क्या सबसे ज्यादा सताता है, खेती करना या खेती के लिय कर्ज लेना? इसका जवाब सरकार नहीं दे सकती। दरअसल, खेती के लिए पैसा, बाजार और पानी की व्यवस्था किसानों को सबसे ज्यादा परेशान करती है। इस समस्याओं को सुलझाने के लिए ही किसान कर्ज लेता है।
2013 में, भारतीय किसानों द्वारा लिए गए कुल ऋण का एक चौथाई से अधिक, प्रति वर्ष 36% की दर से ब्याज लगा कर उनसे लिया जा रहा था। इस बढ़ी हुई ब्याज का मुख्य कारण कर्ज का निजी धन उधारदाताओं (पीएमएल) से लेना था। भारत में कृषि से जुड़ी मौलिक जलवायु अनिश्चितताओं की समस्याओं के साथ ऐसी उच्च–लागत वाले कर्ज किसानों को ले डूबते हैं।
वहीं, अमीर किसान जिन्हें खेती के बाजार जोखिम और जलवायु जैसी अनिश्चितताओं से दो–चार नहीं होना पड़ता, उनके लिए सरकार द्वारा कर्जमाफी करना फायदेमंद साबित होता है।
दरअसल, छोटे किसान आढ़ती पर निर्भर होते हैं। आढ़ती पहले फसल आने पर (हर 4 या 6 महीने पर) किसान को पैसा देता था, अब हर महीने आढ़ती अपने किसानों की किस्तें बैंकों को दे रहा है। किसान बैंकों का नहीं, आढ़ती का कर्जदार है। जब तक सरकार कृषि उत्पाद नहीं खरीदती और हर फसल का समर्थन मूल्य नहीं देती, तब तक किसानों का भला नहीं हो सकता। यह कर्ज माफी का लोकलुभावन खेल भी क्षणिक आराम से अधिक कुछ नहीं है। कर्ज माफी से क्या होगा? सिर्फ इस समय जो किस्तें जानी हैं, उसकी परेशानी दूर हो जाएगी। इसका फायदा उन किसानों को होगा, जो आढ़तियों से मुक्त हैं और पूर्णत: बैकों पर आधारित हैं, यानी कि संपन्न हैं।
जिन किसानों ने आढ़ती से पैसे लेकर बैंकों की किस्तें चुकाई हैं, वे सभी आढ़ती के पास फंसे रहेंगे और उन्हें कर्ज माफी से विशेष फायदा नहीं होगा।
भारत के किसानों का लगभग आधे (45.8%) अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं।
अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति का 14.5% और 13.5% भाग है, जबकि सवर्ण जातियों का 26.1% हिस्सा है। भारत के 85% से अधिक छोटे किसान हैं।
हालाँकि, ऊँची मानी जाने वाली जाति के किसानों को क्षेत्र के अनुसार भी फायदा होता है। लेकिन यहाँ अनुसूचित जाति के अमीर किसान अन्य किसानों से भी बेहतर होते हैं। उनके पास कर्ज चुकाने का पिछला अच्छा रिकॉर्ड होता है जिसके बल पर वह बैंकों से कर्ज लेते हैं। यहाँ भी ऐसे किसानों की संख्या काफी कम होती है। रिकॉर्ड बताते हैं कि कर्ज न चुकाने के कारण आत्महत्या करने वालों में छोटे किसान अधिक रहे हैं।