या समय प्रशासन का काम मड़इन का ठण्ड बचावैं के ऊपर जोरन मा है। काहे से अलाव जलावैं अउर कम्बल बांटै खातिर करोड़न का बजट जिलन मा भेजा जात है। प्रशासन दावा करत है कि दिन मा तौ कम्बल बांटै ही जात हैं।
रात मा गांवन, रेलवे स्टेशन, बस अड्डा अउर सड़क मा ठंड से ठिठुरत मड़इन का कम्बल बांटे जात हैं। या काम प्रशासन का सराहनीय है, पै अगर अलाव के बात कीन जाय तौ कुछ ही चैराहा हैं जहां अलाव जलत हैं। जउन चैराहा मा पार्टी कार्यालय हैं या फेर पार्टी कार्यकर्ता के घर हंै या फेर विभागीय कार्यालय है। गांव मा अलाव अउर कम्बल का नामो निशान निहाय।
सुनै का बहुतै मिला है कि गांवन मा कम्बल बांटै खातिर लेखपालन से लिस्ट तैयार करवा लीन गे है। बांदा जिला के लाखन के आबादी मा 24 दिसंबर तक मा तीन सौ दस कम्बल ही बांटे गे रहैं। जबैकि 12 दिसंबर से 24 दिसंबर तक कोहरा के मारे धूप तक नहीं देखान तौ तीन सौ दस कम्बल मा कउन-कउन मड़ई या सरकारी कम्बल का लाभ उठा पावा होई। 24 के बाद से कम्बल बाटैं के काम मा तेजी देखत है। सवाल या उठत है कि ठण्डी का मौसम के तैयारी आखिर देर से काहे कीन गे? जबैकि या व्यवस्था पहिले से होई जाय का चाही। अगर ठण्डी के व्यवस्था पहिले से कई लीन जाय तौ ठण्डी से होय वाली मउतन का कम कीन जा सकत है। इनतान मा लागत है कि ठण्डी से बचैं के व्यवस्था करब मड़इन के हक दें का काम नहीं बल्कि उनके ऊपर अहसान जतावैं का काम जइसे लागत है।
कम्बल बटत-बंटत ठण्डी का मौसम खतम
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