एक मुस्कान, या फिर सर का वो हल्का सा झुकाना। आंखों में एक शरारत, मानो क़रार का एक ऐलान।
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है, की उस किसी ख़ास दोस्त या सहकर्मी ने आपको एक इशारा दिया, और आपने उसे प्यार का इकरार समझ लिया? और फिर उसके बाद आपका दिल बड़े फ़िल्मी स्टाइल में टूटा?
और एक सवाल आपके मन में हमेशा रहा: क्या उसके दिल में आपके लिए कभी कुछ था ही नहीं? क्या ये लव स्टोरी आप ही के दिमाग में चल रही थी? मानो ख्याली पुलाओ, या कोई मनघडित कहानी?
ये बातें आज के ज़माने में और भी पेचीदा हो गई हैं। प्रोफाइल पिक लाइक करना, रात में व्हाट्स ऐप्प करना, फेसबुक पर ख़ास कमैंट्स करना, सहकर्मियों के साथ उठना बैठना, जोक्स करना, इस सब के बीच रिश्तों की सीमाओं को मापना कोई बच्चों का खेल नहीं।
और तो और, अगर ऐसे में किसी को परेशानी या कष्ट पहुंचा हो, तो मासूमियत और दोस्ती से शुरू हुई कहानी जल्द ही यौन उत्पीड़न और अपराधों के घिरे में आ सकती है। एक बहुत बड़ा मुद्दा बन सकता है, जो आपके मानसिक स्वास्थ्य के साथ साथ, आपके निजी और पेशावर ज़िंदगी दोनों पर भारी पड़ सकता है।
इसी गुत्थी को सुलझाने, और भारतीय क़ानून की इसमें क्या भूमिका है, ऐसी जटिल बातों के पहलुओं को दर्शाने और समझने के लिए पी एल डी नामक एक संस्था ने ली एक ख़ास पहल।
देखिए ये ख़ास पेशकश, सिर्फ ख़बर लहरिया पर।
कभी हां, कभी ना, कभी पता नहीं: प्यार, इकरार, सोशल मीडिया, और क़ानून
किसी के साथ देर रात चैटिंग करने का क्या कोई ख़ास मतलब होता है? मेरी ऐन का कहना है की कुछ लड़के तो अपने दिमाग में ये पकाकर बैठ जाते हैं, की ये मेरे साथ चैटिंग कर रही है, तो ये तो मेरी गर्लफ्रेंड है। लेकिन वो तो व्हाट्स ऐप्प की गलती हुई ना?
देखिए मेरी ऐन की कहानी, उन्ही के ज़बानी।
पीएलडी की ये श्रृंखला ख़ास लहबर लहरिया पर।