जि़ला बांदा। बरसात नहीं, खेत की नमी गायब, फसल सूखने की कगार पर। आने वाले महीनों में फसल की उम्मीद खो चुके किसानों के घर चूल्हे अब साल भर कैसे जलेंगे? सवाल यह भी है कि जब किसानों के चूल्हे नहीं जलेंगे को देश की पूरी जनता के घरों का चूल्हा कैसे जलेगा? बस इन्हीं सवालों के जवाब खोजने हम पहुंचे किसानों और किसानों के हित में काम करने वाले विभागों के पास।
ब्लाॅक बड़ोखर खुर्द, गांव कुलकुम्हारी। यहां के किसान मुन्नालाल विश्वकर्मा लगभग बारह बजे अपने घर से बैलगाड़ी में बैठकर खेत के लिए निकलते हैं, साथ में दो गाय और दो बछड़े जिनको खेत में चरायेगें। वहीं पर बैलों से खेत जोतेंगे । उन्होंने दुख से भरे शब्दों में कहा कि साल दर साल खेती की उपज कम होती जा रही है। सालभर का भरण-पोषण, दवाई, पढ़ाई और शादी का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। आठ बीघा खेती है। जिसमें तिल की फसल बोई थी। मुश्किल से एक बोरा तिल निकले।
सुशीला, देवरती और रानी का कहना है कि हमारे गांव से बांदा 15 किलोमीटर दूर है। खेतों में काम न होने और गांव में मनरेगा का काम न मिलने की वजह से रोज़ बांदा काम करने के लिए जाते है। तीस रुपए किराया आने-जाने का लगता है। जिस दिन मज़दूरी मिल गई तो ठीक नही तो खाली हाथ लौटना पड़ता है। प्रधान रमेश कुमार त्रिवेदी से मनरेगा का काम मांगते हैं तो वह कहता है कि वह किसे-किसे काम दे।
ब्लाॅक बड़ोखर खुर्द, गांव मवई। यहां के किसान बड़कउना का कहना है कि उनके पास कुल डेढ़ बीघा का पट्टा है। उसमें तिल बोया लेकिन जमा नहीं है। क्योंकि बारिश नहीं हो पाई। सिंचाई का साधन नहीं है।
भोला प्रसाद का कहना है-“मैं भूमिहीन किसान मज़दूर हूं। हर साल बटाई की खेती लेकर साल भर के खाने का जुगाड़ करता हूं। इस साल आठ बीघा में तिल की फसल बटाई में खेत लेकर बोया हूं। चार किलो बीज बोया था लगता है कि बीज भी वापस नहीं होगा।”
ब्लाॅक बड़ोखर खुर्द, गांव बोधी पुरवा। यहां के कल्लू का कहना है कि केन नदी के किनारे गांव बसा है। बारिश हो तो बाढ़ और बारिश न हो तो सूखा। आठ बीघे की खेती में से चार बीघे में तिल और पन्द्रह विसुआ में ज्वार बोया था, बाकी खेती परती (खाली) पड़ी है। दोनों फसलें सूख गईं।
किसानों की मदद करने में मनरेगा भी नाकामयाब- मनरेगा के मुख्य विकास अधिकारी राममणि त्रिपाठी से जब पूछा गया कि सूखे और बाढ़ से जूझते किसानों के लिए क्या कोई अलग से व्यवस्था है विभाग में? तो उनका जवाब था- ‘नहीं। यहां तो वही नियम के अनुसार सौ दिन के काम की गारंटी के साथ लोगों को काम दिया जाता है।’
इस स्थिति में क्या कुछ कर रहा है कृषि विभाग- पूर्व जि़ला कृषि अधिकारी बाल गोविन्द का कहना है कि सूखा की स्थिति का पता मौसम विभाग से चल जाने पर ही हमने ज़्यादा से ज़्यादा तिल की खेती करने के लिए प्रेरित किया है। मैंने खुद खेतों में जाकर फसल देखी है, फसल काफी अच्छी है। रवी की फसल की तैयारी है। 7 अक्टूबर 2015 को मण्डल और जि़ला स्तर की गोष्ठी है। उसमें चर्चा-परिचर्चा से निर्णय होंगें कि बारिश और नमी के अभाव में किस तरह के बीज, फसल व खाद इस्तेमाल किए जाएं जिससे किसानों को फायदा हो।