15 अगस्त 1947 को भारत देश को अंग्रेज़ी शासन से आज़ादी मिली और 26 जनवरी 1950 को भारत में संविधान लागू किया गया। इस संविधान में देश के हर नागरिक को स्वतंत्रता और समानता से जीने के अधिकार दिए गए हैं। छांछठ साल आज़ादी के पूरे हो गए और संविधान को लागू हुए तिरसठ साल पूरे हुए हैं। पर कौन है ज़िम्मेदार इस संविधान को लागू करने के लिए?
महिलाओं के साथ बलात्कार, यौन उत्पीड़न, दहेज हत्या जैसी कई हिंसात्मक घटनाएं पहले से कई गुना बढ़ गई हैं। संविधान में लिखा है कि देश के हर नागरिक को अत्याचार से आज़ादी मिलेगी लेकिन अत्याचार और हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। गांव का हर दलित आदिवासी और गरीब नागरिक दबंगों और ऊंच जाति से आज भी दबता है। फिर संविधान में लिखे समानता से जीने के अधिकार को कैसे हासिल कर सकते हैं?
गांव में लोगों के लिए रोज़गार नहीं है। गरीब जनता भुखमरी की कगार पर है। लोग अपना गांव घर छोड़कर पलायन कर रहे हैं। कर्ज़ से डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। अगर ऐसी घटनायें बढ़ती जा रही हैं तो हम हर साल इतनी धूम धाम से गणतंत्र दिवस क्यों मनाते हैं?
26 जनवरी को करोड़ों रुपये खर्च कर सरकार शान से यह पर्व मनाती है। बड़े-बड़े नेता और मंत्री भाषण देते हैं। लोग झांकी निकाल कर इस दिन को मनाते हैं। लेकिन क्या सच में हमें ये अधिकार मिले हुए हैं?
हमारे संविधान में हमारे मौलिक अधिकार लिखे हुए हैं पर उनको लागू करने और उन्हें सबके लिए समान रूप से उपलब्ध कराने से ही ऐसे जलसों का मतलब बनता है।