जि़ला बांदा और चित्रकूट। इस साल भी पूरा बुन्देलखण्ड सूखे की चपेट में है। लगातार इस साल की चैथी फसल तैयार होने की उम्मीद नहीं है। किसान नेताओं की बड़ी लड़ाई के बाद 18 नवंबर को सरकार ने उत्तर प्रदेष के पचास जि़लों में सूखा घोषित कर दिया है। बुंदेलखंड में सूखे की स्थिति जानने के लिए सर्वे हुआ था। मगर ताज्जुब वाली बात यह है कि यह सर्वे केवल चार घंटे में हो गया। 6 नवंबर को बांदा के सर्किट हाउस में अफसरों के साथ मीटिंग करके बांदा और चित्रकूट का सर्वे कर लिया गया। सर्वे का काम इतना जल्दी-जल्दी हुआ कि चाह कर भी किसान नेता निदेषक से नहीं मिल पाए थे।
जिला चित्रकूट, ब्लाॅक पहाड़ी, गांव अगरहुंडा। यहां के किसान देवरती, प्रेमा, रमाकांती, शिवप्यारे, देव सिंह, शिवाकांत, राधे और रामनिहोर का कहना है कि ‘हम सब किसान मज़दूर हैं। दो-दो, तीन-तीन बीघे हमारे पास भी खेती है। हम बड़े किसानों की खेती बटाई में लेकर मेहनत करते थे और बरसात के चार महीने समेत कुछ दिन के खाने के लिए कमा लेते थे क्योंकि बरसात में काम नहीं मिलता है। इस साल वह भी नहीं है। परिवार समेत अब परदेस जाने की तैयारी है। लेकिन इस बात का पछतावा है कि बच्चों की पढ़ाई और भविष्य पर गहरा असर पडे़गा।’
जि़ला बांदा, ब्लाॅक बड़ोखर खुर्द, गांव कुलकुम्हारी। यहां के किसान राममूरत, लखन सिंह और राजू का कहना है कि ‘इस साल तो हम बरबाद हो गए हैं। साल दर साल किसानों की समस्या बढ़ती ही चली जा रही है। हमारे बच्चों की पढ़ाई पर इसका असर पड़ रहा है। मुआवज़ा भी हमें नहीं मिला है। सोसाइटी में खाद-बीज आ गया है लेकिन पैसा नहीं है कि खाद-बीज खरीद सकें।’
चित्रकूट धाम मण्डल के उप कृषि निदेषक उमेश चन्द्र कटियार का कहना है कि ‘चना, मसूर, मटर, सरसों और गेहूं के बीज और खाद आ गई है। हमारा प्रयास है कि ज़्यादा से ज़्यादा खेती हो सके लेकिन अभी तक किसानों ने बहुत कम बीज खरीदे हैं। रही बात सर्वे की तो केन्द्र से आए अधिकारी ने खेती से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों से बैठक करके मीटिंग की है। हो सकता है वह उसी आधार पर सर्वे रिपोर्ट तैयार करें ।’
लगातार पांच सालों से किसानों को रोज़ी-रोटी के लाले पड़े हैं। केन्द्र सरकार चार घंटे का सर्वे कराके किसानों के दर्द को मज़ाक बना रही है। कभी सर्वे तो कभी मुआवज़ा देने की खानापूर्ति करके किसानों के साथ छलावा किया जा रहा है।
बुन्देखण्ड किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विमल कुमार शर्मा
केन्द्र की टीमें हवा हवाई ही सर्वे करती हैं। चार पहिया ए.सी. वाहन से हाइवे के किनारे खेत को देखकर सर्वे की खानापूर्ति कर लेते हैं। जबकि गांव जा कर किसानों की हकीकत को जानना चाहिए था। बांदा जि़ले में कृषि विभाग के हिसाब से चालीस हज़ार बीघे खेती परती पड़ी है। जबकि 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक में पूरी खेती जोत बो जानी चाहिए थी।
बुन्देलखण्ड में किसानों के हित में काम करनेवाली प्रवास सोसाइटी के आशीष सागर दीक्षित