उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड इलाका मा किसान परेशान रहत हवै कत्तौ सूखा परत हवै तौ कत्तौ बेमोसम बारिस जइसे के समस्या से किसान जूझत रहत हवै। अगर नींक फसल भे तौ चांदी चांदी नहीं तौ साल भर के खाये का राशन तक नहीं रही जात अउर या समस्या से किसान जूझत हवैं।
केन्द्र सरकार होय या फेर राज्य सरकार बस या कहि देत है कि किसानन का सूखा राहत अउर बर्बाद फसल का मुआवजा दीन जई। उनके जानवरन खातिर भूसा के व्यवस्था कीन जई
अब अगर मुआवजा के बात कीन जाये तौ या साल पूरे बुन्देलखण्ड का किसान रबी अउर खरीफ के कउनौ भी फसल सूखा के कारन पूरीतान से तैयार नही कइ पाय। सरकार से मिलैं वाले मुआवजा खातिर तहसील अउर अधिकारिन के चक्कर लगावत हवैं, पै अबै तक हजारन किसानन का मुआवजा नहीं मिला न जानवरन के भूसा के व्यवस्था कीन गे। जेहिसे किसानन आय दिन अपनी मांगन का लइके धरना प्रदर्शन करत हवैं।
यहिसे या बात सउहें आवत हवै कि अगर हमार जिला का किसान न सुखी रही तौ आम जनता कसत खुश रही सकत हवै। काहे से कि किसान ही एक इनतान का मड़ई होत हवै जउन रात दिन खेतन मा मेहनत कइके फसल तैयार करत हवै। यहिके बादौ अगर खेती मा कउनौ भी फसल नींक न होइ तौ उनके मेहनत मा पानी फिरत नजर आवत हवै। या बात कउनौ से छिपी नहीं आय कि बुंदेलखण्ड मा लगभग तीन साल से सूखा पर रहा हवै। सरकार या बात काहे नहीं सोचत कि जब किसान खुश न रही तौ आम जनता का खुशी कहां से मिल सकत हवै?