यह ऐसी दुर्घटना थी जिसने विश्व के फैशन उद्योग को हिला दिया – इससे वो खतरनाक परिस्थितियां सामने आ गयीं जिनमे करोड़ों बांग्लादेशी कर्मचारी कपडे सीने का काम करते हैं।
अप्रैल 2013 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में राना प्लाजा बिल्डिंग गिर गयी। यह 8 मंज़िल का फैक्टरी काम्प्लेक्स था जो बड़े बड़े ब्रैंडो को कपड़ों की आपूर्ति करता था। इसके मलबे से 1,136 कर्मचारियों की लाशें निकाली गयीं।
तीन साल बाद, जब विशेषज्ञ, सरकार, दुकानदारों, फैक्ट्री के मालिकों और उपभोगताओं की इन कर्मचारियों की सुरक्षा के बन्दोवस्त न करने के लिए आलोचना कर रहे हैं। इस दुर्घटना से उपजा एक चमत्कार अपना रूप ले रहा है।
२२ महिला फैक्टरी कर्मचारी अपनी नौकरी छोड़ कर एशियाई यूनिवर्सिटी ऑफ़ वीमेन (AUW) में भर्ती हो गयी हैं। इस दुर्घटना के बाद शुरू किये गए AUW के पाथवेज कार्यक्रम का उद्देश्य महिला कर्मचारियों का सशक्तिकरण है। ताकि वे शक्तिशाली नेता बन सकें और कपडा उद्योग में उनकी ज़्यादा प्रभावशाली आवाज़ हो।
“राना प्लाजा दुर्घटना कर्मचारियों की ज़रूरतों के प्रति उद्योग की असंवेदनशीलता की सूचक है। इनके भी अपने सपने और परिवार है, मगर इस दुर्घटना के होने तक उनको सुनने वाला कोई नहीं था” AUW के निदेशक और सीईओ कमल अहमद ने बताया। “हज़ारों समितियों की रिपोर्ट बनी है और वितरित की गयी है मगर ये कर्मचारी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी आवाज़ नहीं उठा सके जिससे कानून को प्रभावित कर सकें।”
यह पांच साल का कोर्स रेडी मेड कपड़ों के कारखानों या दूसरे क्षेत्रों में औरतों को अपनी आवाज़ उठने में मदद करेगा, अहमद ने बताया।
पूरा वज़ीफ़ा, महीनेवार वेतन
बांग्लादेश चीन देश के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपडा उत्पादक है। ये यहां की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण स्तम्ब है। इससे 25 ख़राब डॉलर की वार्षिक आमदनी होती है । जो सकल घरेलु उत्पाद का 20 प्रतिशत है ।
देश की 5 हजार फैकटरियों में करोड़ों कर्मचारी काम करते हैं । ये बड़े बड़े ब्रैंड जैसे मेंगो, ज़ारा, नेक्स्ट, गैप आदि के लिए टीशर्ट, जीन्स और ड्रेसें बनाते हैं फिर भी हालाँकि यहाँ 60 प्रतिशत महिलाएं काम करती हैं, वे अधिकतर छोटे पदों पर ही है मैनेजर स्तर के पद पुरुषों की पास हैं । इसका कारण है इन महिलाओं में पुरुषों की तुलना में शिक्षा की कमी । इनमे से कई ग्रामीण इलाकों से आती है । ज़्यादातर इन्हे फैक्ट्री में काम करके परिवार चलाने के लिए शिक्षा छोड़नी पड़ती है ।
बांग्लादेश के चिट्टागोंग में स्थित AUW ने 2008 में अपने दरवाज़े खोले । इसने एशिया और मध्य पूर्वी देशों के गरीब घरों से आयी औरतों के लिए मुफ्त डिग्री कोर्स शुरू किये । आज इस विश्वविद्यालय में 500 विद्यार्थी हैं । ये अर्थशास्त्र, सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण विज्ञान , दर्शन शास्त्र जैसे विषयों पर पर शिक्षा ले रहे हैं।
जनवरी में AUW ने महिला कपडा कर्मचारियों के लिए 5 साल का डिग्री प्रोग्राम शुरु किया । जिन 22 महिला कर्मचारियों को चुन गया उन्हें पूरे 5 साल के लिए वज़ीफ़ा दिया गया । इसके अलावा जहाँ वे काम करती थीं वे भी उनका वेतन देते रहेंगे जबकि पढ़ाई ख़त्म होने के बाद उनके वापस लौटने की कोई गारंटी नहीं है । उनको लगभग 100 डॉलर का मासिक वेतन मिलते रहना इस कार्यकर्म की सफलता का मुख्य कारण है । नहीं तो उनके वेतन पर निर्भर उनके परिवार शायद पढ़ने की इजाज़त नहीं देते ।
ज़िंदगी बदलने का मौक़ा
पिछले साल पाथवेज़ कार्यक्रम की समन्वयक मोविता बसक कपडा फैकटरियों में गयीं और उनके मालिकों से अपनी सबसे तेज़ दिमाग महिलाओं को पूरे वेतन के साथ कोर्स करने के लिए भेजने को कहा । “मैंने उन्हें बोला कि इससे कपडा फैकटरियों की राना प्लाजा दुर्घटना के बाद ख़राब हुयी साख बेहतर होगी . ” काफी फैक्ट्री मालिकों ने इसमें रूचि नहीं दिखाई। सिर्फ पांच कंपनियां – अनन्त ग्रुप, सन्मान ग्रुप, पौ चेन ग्रुप, मोहम्मद ग्रुप और नीट कंसर्न इसमें भाग लेने को तैयार हो गए .
इस प्रोग्राम में चुने गए कर्मचारियों के लिए ये मौका किसी सपने के पूरे होने से कम नहीं था ” मैं हमेशा से और पढ़ना चाहती थी। मेरे माता- पिता बूढ़े हो चुके हैं और दो छोटी बहने है । अपने परिवार में मैं ही हूँ जो काम कर सकती हूँ ” अनन्त ग्रुप की 28 साल की सोनिया गोम्स ने कहा । “मैंने तो आशा छोड़ ही दी थी मगर फिर इस कार्यक्रम के बारे में सुना । मुझे खुशी है कि मेरा चुनाव हो गया । इससे आशा है मेरी ज़िंदगी बदलेगी । मैं बिज़नेस वीमेन बनना चाहती हूँ और दूसरे कपडा कर्मचारियों के साथ मिलकर उनके अधिकारों के लिए लड़ना चाहती हूँ “
साभार : नीता भल्ला / द वायर (http://thewire.in/2016/04/26/fashions-deadliest-disaster-prompts-bangladeshi-workers-to-opt-for-university-31718/)